रचना दिनांक,,16,, नवम्बर 2024
वार। शनिवार
समय। सुबह पांच बजे
््निज विचार ््
्््भावचित्र ्््
्््शीर्षक ्््
्््ऐ नज़र ््््निजविचार्भावचित्र ्
्शीर्षक ्
ऐ नज़र
बड़े खुश नसीब है वो,,
जो अपने होते नहीं देख सकते थे।।1।।
जिन्हें अपना कहते थकते नहीं थे,,
वो लफ्जो से आस्तीन के सांप बन गये।।
देखें सपनो में खो गए ऐ नज़र,,
वो लफ्जो का नूर काफ़िर बन गया।।3।।
कहने को परखना तन मन नहीं,,
ये पूतला माटी का नही है।।4।।
ये इबादत अकीदत पेश किया गया,,
मेरे हजूर नबी की खिदमत में पेश है।5।
ये अल्फाज़ नगीना है नूर है,,
ये साफ़ आयना मेरे ज़िगर से है।6।
ये ईमान लिखूं या प्रेम की हकीकत,,
ऐ नज़र इश्क में जो कुछ लिखा गया,,
वो मतला तेरे ख्यालों का,,
ये नूर ए नज़र रुहानी जिंदगी का।7।
यूं ही पत्थरों को तराशते रहे,,
किसी कि याद में जिंदगीसवार दी।8।
्््कवि््शैलेन्द़ आनंद ््
किसी की यादों में हम दिलों सए
©Shailendra Anand
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