मैं धरा तू अम्बर है..
यूँ तो कोई हक़ नहीं तेरा मुझपर..
फिर भी जाने क्यू तेरे आँसू मेरा आँचल भिगो देते हैं..
फिर भी जाने क्यू खिल उठती हूँ मैं, जब बरसता है तू खुश होकर...
फिर भी जाने क्यू सहम जाती हूँ मैं, जब गरजता है तू ज़ोरों से..
यूँ तो कोई मेल नहीं तेरा मेरा..
पर ऐसा कोई छोर नहीं मेरा,
जहाँ से होता नहीं दीदार तेरा..
वाह रे खुदाया तेरी कुदरत..
कभी मिलते नहीं पर साथ चलते हैं दोनों,
बंधे हैं एक बेनाम से रिश्ते में दोनों...
रहते हैं इसी ख्वाहिश में दोनों की,
मिलेंगे किसी मोड पे कभी तो हम दोनों...
पाऊँ तुझे ये ख्वाहिश नहीं मेरी..
बरसता रहे तेरे प्रेम का सावन मुझपर,
बस, इतनी सी है हसरत मेरी...
तू अम्बर मैं धरा तेरी..
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here