यूँ इस कदर आज तुम्हारी याद आ रही थी।
जैसे ये आँखें तुमसे एक बार फिर मिलने की ख्वाइश जता रहीं थी।
वो तुम्हारे अल्फाज़, वो हमारे अफसाने, माशल्लाह क्या ही उन में बात थी।
आज भी बिना तुम्हारा नाम लिए, मेरी महफ़िल में सिर्फ़ तुम्हारी ही बात थी।
किसे पता था वो मुलाक़ात हमारी इस जन्म की आखरी मुलाकात थी।
अगर मंज़िल हमारी अलग ही होनी थी तो कमभख्त यह किस्मत हमें क्यूं इस क़दर मिला बैठी थी।
ख्वाबों में तो हर रोज़ मिलते हो, मगर आज आखरी बार मिलने की मुराद दिल की थी।
पुछना था तुमसे कि मोहब्बत सिर्फ हमने की थी या वफायी तुम्हारी तरफ़ से भी थी।
©Harshita Garg
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