Himanshu uniyal

Himanshu uniyal "चन्द्र" Lives in Ajmer, Rajasthan, India

पेशे से नहीं शौक से कवि हूँ साहिल हूँ, पत्ता हूँ, ग़म का ख़ज़ाना हूँ; मुझे घर पर ना ढूंढ़ना दोस्त, कश्ती हूँ, नग़मा हूँ, आवारा ठिकाना हूँ।। -----------∆-----------∆------------∆----------- कुछ नया करने की कोशिश ही आपको अलग बनाये रखती है।

https://youtu.be/pECccMifpMo

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ये जो आज तुमने नक़ाब हटा दिया नक़ली है कैसे विश्वास करूँ कि इसके पीछे का चेहरा असली है!! चन्द्र

#विचार  ये  जो   आज   तुमने   नक़ाब   हटा   दिया  नक़ली  है
कैसे विश्वास करूँ कि इसके पीछे का चेहरा असली है!!
चन्द्र

खुद होकर बर्बाद ये करें देश आबाद ये।। 🤭🤭

#विचार  खुद होकर बर्बाद ये
करें देश आबाद ये।।
🤭🤭

थोड़ा सा तुमको सँवार लेता तुम्हारे बालों को चेहरे से हटा लेता जब जब होती बारिश की कमी ज़मीं पे तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से उधार काली घटा लेता।

#शायरी #Earth_Day_2020  थोड़ा सा तुमको सँवार लेता
तुम्हारे बालों को चेहरे से हटा लेता
जब जब होती बारिश की कमी ज़मीं पे
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से उधार काली घटा लेता।

पशु, खासकर श्वान कीड़े पड़कर मर जाते थे, फिर खाद्य वस्तुओं में कीड़े लगने लगे, और अब इंसान कीड़े से मर रहा है। वो कहावत सही हो रही - "कीड़े पड़ेंगे तेरे"। #कोरोना वायरस

#हिमांशु_उनियाल #कोरोना #विचार  पशु, खासकर श्वान कीड़े पड़कर  मर जाते थे,
फिर खाद्य वस्तुओं में कीड़े लगने लगे,
और अब इंसान कीड़े से मर रहा है।
वो कहावत सही हो रही - "कीड़े पड़ेंगे तेरे"।

#कोरोना वायरस

बीज छोटा सा, कतरा सा, बिल्कुल नाचीज़ बेजान अनजान बेसुध फ़रदीन। कुछ करने में नाकाम कोस रहा अपना ज़मीर मिला साथ तो उड़कर आया संग समीर। फिर माटी में आकर बरखा की बून्दों की सोहबत पाकर हुआ आगाज़, नन्हा पौधा बन चुका था बीज टिमटिमाते देखा इस दुनियाँ को सीख रहा तमीज़। बीता वक़्त, बीज हो के बड़ा सख़्त अब बन चुका था अज़ीम दरख्त। तेरे अंदर भी तो बीज है__ वक़्त ए समीर के संग उड़ाकर दिले ज़मीं पे उगाकर मजबूत इरादों की बारिश का पानी पिलाकर उस बीज को सींच ले इक दिन जिगर की ज़मीं पे खड़ा होगा मज़बूत दरख़्त। जिस पर हौंसलों के लगेंगे फल कल आज और कल। चन्द्र

#कविता #Happy_holi  बीज
छोटा सा, कतरा सा, बिल्कुल नाचीज़
बेजान अनजान बेसुध फ़रदीन।
कुछ करने में नाकाम
कोस रहा अपना ज़मीर
मिला साथ तो
उड़कर आया संग समीर।
फिर माटी में आकर
बरखा की बून्दों की सोहबत पाकर
हुआ आगाज़,
नन्हा पौधा बन चुका था बीज
टिमटिमाते देखा इस दुनियाँ को
सीख रहा तमीज़।
बीता वक़्त,
बीज हो के बड़ा सख़्त
अब बन चुका था अज़ीम दरख्त।
तेरे अंदर भी तो बीज है__
वक़्त ए समीर के संग उड़ाकर
दिले ज़मीं पे उगाकर
मजबूत इरादों की बारिश का पानी पिलाकर
उस बीज को सींच ले
इक दिन जिगर की ज़मीं पे
खड़ा होगा मज़बूत दरख़्त।
जिस पर हौंसलों के लगेंगे फल
कल आज और कल।
चन्द्र
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