Kaushal Kumar

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स्वयं की तलाश में हर दिन, हर पल

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तुम्हें  तसल्ली  मिलती  हो  तो, तुम  भी  कुछ  ऐसा  कर  लो। मुझ पर कुछ आरोप लगा लो, खुद  को  निर्मल सा कर लो।। हम  खुद को साबित कर लेंगे, हर     लगते     आरोपों    से। पर  बोलो  क्या  बच  पाओगे, तुम   इन   बेजा   पापों   से।। गैरों  की  थाली  का  भोजन, छीन   स्वयं   का   पेट  भरो। या   गैरों   की   गूढ़   कमाई, लूटो    या    आखेट    करो।। दुनिया  को  बहका सकते हो, करके   यह  दोहरा  व्यवहार। पर  उसको  क्या बहकाओगे, जिसकी  महिमा  अपरम्पार।।                  .............. कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar

#कविता #Tasalli  तुम्हें  तसल्ली  मिलती  हो  तो,
तुम  भी  कुछ  ऐसा  कर  लो।
मुझ पर कुछ आरोप लगा लो,
खुद  को  निर्मल सा कर लो।।

हम  खुद को साबित कर लेंगे,
हर     लगते     आरोपों    से।
पर  बोलो  क्या  बच  पाओगे,
तुम   इन   बेजा   पापों   से।।

गैरों  की  थाली  का  भोजन,
छीन   स्वयं   का   पेट  भरो।
या   गैरों   की   गूढ़   कमाई,
लूटो    या    आखेट    करो।।

दुनिया  को  बहका सकते हो,
करके   यह  दोहरा  व्यवहार।
पर  उसको  क्या बहकाओगे,
जिसकी  महिमा  अपरम्पार।।

                 .............. कौशल तिवारी






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©Kaushal Kumar

#Tasalli

14 Love

रिश्तेदारियों की भी एक उम्र होती है। प्रारम्भ में जो आपसी प्रेम और लगाव होता है, वह समय के साथ दोनों ही पक्षों द्वारा, धीरे-धीरे उदासीनता की तरफ बढ़ता चला जाता है। प्राथमिकता में नई-नई रिश्तेदारियाँ आती जाती है, और पुरानी रिश्तेदारियाँ उम्र ढलने के साथ, समाप्ति की ओर बढ़ने लगती हैं। रिश्ते निभाना, रिश्तेदारियों के बंधनों को, मजबूत बनाये रखना बहुत बड़ी कला है। ये सबके बस की बात नही होती।  रिश्तों की उदासीनता में, अयोग्य लोगों का, बहुत बड़ा हाथ होता है। अयोग्य लोग बड़े कुचक्री होते हैं, और ऐसे लोगों की वजह से ही, रिश्तेदारियाँ समय से पूर्व ही उदासीनता, और कभी - कभी तो अंत को प्राप्त हो जाती हैं।                             ......कौशल तिवारी . ©Kaushal Kumar

#रिश्तेदारियाँ #विचार  रिश्तेदारियों की भी एक उम्र होती है।

प्रारम्भ में जो आपसी प्रेम और लगाव होता है, 
वह समय के साथ दोनों ही पक्षों द्वारा,
धीरे-धीरे उदासीनता की तरफ बढ़ता चला जाता है।
प्राथमिकता में नई-नई रिश्तेदारियाँ आती जाती है,
और पुरानी रिश्तेदारियाँ उम्र ढलने के साथ,
समाप्ति की ओर बढ़ने लगती हैं।

रिश्ते निभाना, रिश्तेदारियों के बंधनों को,
मजबूत बनाये रखना बहुत बड़ी कला है।
ये सबके बस की बात नही होती। 

रिश्तों की उदासीनता में,
अयोग्य लोगों का, बहुत बड़ा हाथ होता है। 
अयोग्य लोग बड़े कुचक्री होते हैं,
और ऐसे लोगों की वजह से ही,
रिश्तेदारियाँ समय से पूर्व ही उदासीनता,
और कभी - कभी तो अंत को प्राप्त हो जाती हैं। 

                           ......कौशल तिवारी




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कुछ पुरुषों में पुरुषत्व आजकल  दो  पुरुषों   में   हुई   जुबानी   जंग  अचानक। दोनो   ने   दम   भर - भर   तने  भुजाओं  को।। एक  से  बढ़कर  एक गालियाँ  बकीं  भयानक। एक    दूसरे    के   घर    की   महिलाओं  को।। ऐसे   पुरुषों   का   पुरुषत्व   महज  इतना  ही। कौन,  किस  तरह,  कितना  है  ताकत  वाला।। किसने किसके घर की किस-किस महिला को। कैसे - कैसे,  क्या - क्या,  कितना  कह  डाला।।                               .........कौशल तिवारी . ©Kaushal Kumar

#पुरुषत्व #कविता  कुछ पुरुषों में पुरुषत्व आजकल 

दो  पुरुषों   में   हुई   जुबानी   जंग  अचानक।
दोनो   ने   दम   भर - भर   तने  भुजाओं  को।।
एक  से  बढ़कर  एक गालियाँ  बकीं  भयानक।
एक    दूसरे    के   घर    की   महिलाओं  को।।

ऐसे   पुरुषों   का   पुरुषत्व   महज  इतना  ही।
कौन,  किस  तरह,  कितना  है  ताकत  वाला।।
किसने किसके घर की किस-किस महिला को।
कैसे - कैसे,  क्या - क्या,  कितना  कह  डाला।।

                                          .........कौशल तिवारी





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#पुरुषत्व आजकल

13 Love

घर का मुखिया घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं। घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।। अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है। जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।। सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है। उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।। अंदर - अंदर चीख रही पर, बाहर लगता खेल रही है। कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।। हरा - भरा जो वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है। टहनी सूखी हो जाने पर, जलने को काटा जाता है।। बोझ उठा लेने वाले पर, बोझ अधिक डाला जाता है। सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।। रीत जगत की ऐसी ही है, जो जितना करता जाता है। वही अंत में उम्मीदों के, खंडन से मरता जाता है।। ............कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar

#कविता #घर  घर का मुखिया

घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं।
घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।।

अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है।
जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।।

सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है।
उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।।

अंदर - अंदर  चीख  रही  पर, बाहर लगता खेल रही है।
कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।।

हरा - भरा  जो  वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है।
टहनी  सूखी  हो  जाने  पर, जलने को काटा जाता है।।

बोझ  उठा  लेने  वाले  पर, बोझ अधिक डाला जाता है।
सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।।

रीत  जगत  की  ऐसी  ही है, जो जितना करता जाता है।
वही  अंत   में   उम्मीदों  के, खंडन  से  मरता  जाता  है।।
                       
                                       ............कौशल तिवारी




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#घर का मुखिया

16 Love

खरीदने को तो पूरा ठेला ही खरीद सकते हैं, सबके नसीब में डाल के पके आम थोड़ी हैं।। हो लाख आरओ का पानी व फ्रिज की ठंडाई, सबके नसीब में नल का ताजा जल थोड़ी है।। चौबीस घंटों बिजली और वातानुकूलित कमरे, सबके नसीब में बागों की ताजी हवा थोड़ी है।। ऊंचे मकानों की बालकनी में बैठ बारिश देखना, सबके नसीब में मिट्टी की सोंधी सुगंध थोड़ी है।। आदमी से मशीन होना और भागते रहना, सबके नसीब में खुले गगन के नीचे सोना थोड़ी है।। जिसे जैसे पाना ठग लेना, उगाह लेना, भरमा देना, सबके नसीब में मासूमियत, इंसानियत थोड़ी है।। ..........कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar

#विचार #नसीब  खरीदने को तो पूरा ठेला ही खरीद सकते हैं,
सबके नसीब में डाल के पके आम थोड़ी हैं।।

हो लाख आरओ का पानी व फ्रिज की ठंडाई,
सबके नसीब में नल का ताजा जल थोड़ी है।।

चौबीस घंटों बिजली और वातानुकूलित कमरे,
सबके नसीब में बागों की ताजी हवा थोड़ी है।।

ऊंचे मकानों की बालकनी में बैठ बारिश देखना,
सबके नसीब में मिट्टी की सोंधी सुगंध थोड़ी है।।

आदमी   से   मशीन   होना   और   भागते   रहना,
सबके नसीब में खुले गगन के नीचे सोना थोड़ी है।।

जिसे जैसे पाना ठग लेना, उगाह लेना, भरमा देना,
सबके नसीब में मासूमियत,  इंसानियत  थोड़ी  है।।
                  
                                        ..........कौशल तिवारी




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#तसल्ली #कविता  

तुम्हें  तसल्ली  मिलती  हो  तो,
तुम  भी  कुछ  ऐसा  कर  लो।
मुझ पर कुछ आरोप लगा लो,
खुद  को  निर्मल सा कर लो।।

हम  खुद को साबित कर लेंगे,
हर     लगते     आरोपों    से।
पर  बोलो  क्या  बच  पाओगे,
तुम   इन   बेजा   पापों   से।।

गैरों  की  थाली  का  भोजन,
छीन   स्वयं   का   पेट  भरो।
या   गैरों   की   गूढ़   कमाई,
लूटो    या    आखेट    करो।।

दुनिया  को  बहका सकते हो,
करके   यह  दोहरा  व्यवहार।
पर  उसको  क्या बहकाओगे,
जिसकी  महिमा  अपरम्पार।।

                 .............. कौशल तिवारी



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