rupa prasad

rupa prasad Lives in Durgapur, West Bengal, India

  • Latest
  • Popular
  • Video

सब कुछ खत्म हो गया सबकुछ लोगों में खबर फैलाई और हम मशूर हो गए ना हम रहे ना हमारा वजूद रहा शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया नफ़रत करने के लिए ©rupa prasad

#feel_alone  सब कुछ खत्म हो गया
 सबकुछ
लोगों में खबर फैलाई
और हम मशूर हो गए
ना हम रहे ना हमारा वजूद रहा
शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
नफ़रत करने के लिए

©rupa prasad

#feel_alone

13 Love

तुझे देख सुकून मिलता मुझे, जैसे तोहफ़े में मिला खुदा का आखरी नूर हो मुहब्बत का दिन मुबारक हो आपको । कुबूल है हमे यह गुस्ताखी, हम आपसे इश्क करते है। ©rupa prasad

#ValentinesDay #ValentineDay #proposeday  तुझे देख सुकून मिलता मुझे,
जैसे  तोहफ़े में मिला खुदा का
आखरी नूर हो

मुहब्बत का दिन मुबारक हो आपको ।

कुबूल है हमे यह गुस्ताखी,
हम आपसे इश्क  करते है।

©rupa prasad

शिक्षक अनमोल उपहार जीवन का है शिक्षक, राह दिखाती, हौसला देती, बनाती हमें सशक्त। होता इसका बहुस्वरूप, विस्तृत है यह अपने अनूप। मां ,बंधु ,रिपु ,गुरु यही जाने हम सब पशु- पक्षी और प्रकृति भी है इसके झंकृति घटना ,दैवीय अनुभव, कालचक्र देखो यह तुम सब पहचान लिए तो बन जाओगे भिक्षुक, सदा सत्य है हेतु रहोगे इच्छुक। अनमोल उपहार जीवन का है शिक्षक, ह्रदय साथ कर लो शीश नतमस्तक। ©rupa prasad

#शिक्षक #टीचर्स  शिक्षक

अनमोल उपहार जीवन का है शिक्षक,
राह दिखाती, हौसला देती, बनाती हमें सशक्त।

होता इसका बहुस्वरूप,
विस्तृत है यह अपने अनूप।

मां ,बंधु ,रिपु ,गुरु यही जाने हम सब
पशु- पक्षी और प्रकृति
भी है इसके झंकृति
घटना ,दैवीय अनुभव, कालचक्र देखो यह तुम सब

पहचान लिए तो बन जाओगे भिक्षुक,
सदा सत्य है हेतु रहोगे इच्छुक।

अनमोल उपहार जीवन का है शिक्षक,
ह्रदय साथ कर लो शीश नतमस्तक।

©rupa prasad

हिंदी हिंदी हमारी देश की भाषा, जन -जन के विचार की भाषा। महापुरुषों के कर्मों का, गाथा सुनाती चलती भाषा। समय परिवर्तन के साथ बदलती चलती, नवीनता का रंग पहनती चलती। अतीत से लेकर आज तक, सबको एकता में बांधती चलती। है यह समृद्ध भाषा लेकर अपने कई रूप, है यह मातृभाषा, संपर्क भाषा देकर अपने कई स्वरूप। हाथ बढ़ाओ प्राण करो करो आह्वान, रखे जीवित हम सभी गौरवमय भाषा का मान। ©rupa prasad

#matrabhasha #Hindidiwas  हिंदी 


हिंदी हमारी देश की भाषा,
जन -जन के विचार की भाषा।
महापुरुषों के कर्मों का,
गाथा सुनाती चलती भाषा।

समय परिवर्तन के साथ बदलती चलती,
नवीनता का रंग पहनती चलती।
अतीत से लेकर आज तक,
सबको एकता में बांधती चलती।

है यह समृद्ध भाषा लेकर अपने कई रूप,
है यह मातृभाषा, संपर्क भाषा देकर अपने कई स्वरूप।
हाथ बढ़ाओ प्राण करो करो आह्वान,
रखे जीवित हम सभी गौरवमय भाषा का मान।

©rupa prasad

साहित्य मानवीय मूल्यों का संचार कर, समाज में नैतिकता स्थापित करती है। विज्ञान के चमत्कार ,अहंकार के राग को, शांत कर सत्व की समरसता का संचार करती है। शिष्टाचार सिखाती है, जन-जन के हृदय में प्रेम जगाती है। पशुता मिटाती है ,मानव को मानव बनाती है। है इसके विविध रूप ,प्रसार फैला इसका दूर-दूर कहानी ,कविता, आत्मकथा ,एकांकी से भरपूर नाटक, गीत, सिनेमा रूप इसके है मशहूर युद्ध का कारण बनता विज्ञान ,शांति फैलाती साहित्य महान कर्म है इसका शांतिदूत, इसके बिना बने मानव मशीन रूप ©rupa prasad

#शांतिदूत #साहित्य #litrature  साहित्य

मानवीय मूल्यों का संचार कर,
समाज में नैतिकता स्थापित करती है।
विज्ञान के चमत्कार ,अहंकार के राग को,
शांत कर सत्व की समरसता का संचार करती है।

शिष्टाचार सिखाती है, जन-जन के हृदय में प्रेम जगाती है।
पशुता मिटाती है ,मानव को मानव बनाती है।

है इसके विविध रूप ,प्रसार फैला इसका दूर-दूर
कहानी ,कविता, आत्मकथा ,एकांकी से भरपूर
नाटक, गीत, सिनेमा रूप इसके है मशहूर


युद्ध का कारण बनता विज्ञान ,शांति फैलाती साहित्य महान
कर्म है इसका शांतिदूत, इसके बिना बने मानव मशीन रूप

©rupa prasad

फ़ोन है यह चमत्कार विज्ञान का, अनोखा यंत्र आया है। झट मिटाए मिलों का फ़ासला, बच्चों बूढ़ों तक छाया है। सुबह से रात इसमें वक्त गुजारे सब। राशन पानी जैसे हुआ जरूरी लगे अब। टूटने ,छूटने से डरते ,हिफाजत करने में लगे सब। ना हुआ आभास तक बना गुलाम मानव कब? कोरोना काल में यह बना वरदान, मिला सबको नया उपहार। डिजिटल होने का चला है दौर ,होता संपन्न कार्य इससे हर ओर। हो जाओ सतर्क यह है एक यंत्र, विकिरण से बिगड़े शारीरिक तंत्र। मत हो इतना मंत्रमुग्ध इच्छा तुम्हारी , हो जाओ रोग ग्रस्त या स्वतंत्र। ©rupa prasad

#फ़ोन #Phone  फ़ोन है यह चमत्कार विज्ञान का, अनोखा यंत्र आया है।
झट मिटाए मिलों का फ़ासला, बच्चों बूढ़ों तक छाया है।

सुबह से रात इसमें वक्त गुजारे सब।
राशन पानी जैसे हुआ जरूरी लगे अब।
टूटने ,छूटने से डरते ,हिफाजत करने में लगे सब।
ना हुआ आभास तक बना गुलाम मानव कब?

कोरोना काल में यह बना वरदान, मिला सबको नया उपहार।
डिजिटल होने का चला है दौर ,होता संपन्न कार्य इससे हर ओर।

हो जाओ सतर्क यह है एक यंत्र,
विकिरण से बिगड़े शारीरिक तंत्र।
मत हो इतना मंत्रमुग्ध
इच्छा तुम्हारी ,
हो जाओ रोग ग्रस्त या स्वतंत्र।

©rupa prasad
Trending Topic