फ़ोन है यह चमत्कार विज्ञान का, अनोखा यंत्र आया है।
झट मिटाए मिलों का फ़ासला, बच्चों बूढ़ों तक छाया है।
सुबह से रात इसमें वक्त गुजारे सब।
राशन पानी जैसे हुआ जरूरी लगे अब।
टूटने ,छूटने से डरते ,हिफाजत करने में लगे सब।
ना हुआ आभास तक बना गुलाम मानव कब?
कोरोना काल में यह बना वरदान, मिला सबको नया उपहार।
डिजिटल होने का चला है दौर ,होता संपन्न कार्य इससे हर ओर।
हो जाओ सतर्क यह है एक यंत्र,
विकिरण से बिगड़े शारीरिक तंत्र।
मत हो इतना मंत्रमुग्ध
इच्छा तुम्हारी ,
हो जाओ रोग ग्रस्त या स्वतंत्र।
©rupa prasad
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