Yusuf Dehlvi

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अपनी कलम से अपने कलाम लिखता हूँ। ब्लॉग्स पढ़ने वालों को सलाम लिखता हूँ। मीर, ग़ालिब के शहर से हूँ, मैं भी शेर कहता हूँ। हिन्दुस्तान के दिल दिल्ली मे रहता हूँ। उम्र छोटी है, तज़ुर्बा बड़ा है। जनाब वक़ील हूँ, अदालत में रहता हूँ। अदाकारी भी की, निज़ामत भी की, किताबों के साथ आँखे भी पढ़कर आया हूँ। मेरे सरकार दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट पढ़कर आया हूँ। कबूतरों ने नोकरी छोड़ दी, सब ने चिट्ठी लिखनी पढ़नी छोड़ दी,इसलिए दोस्त में आपसे मिलने अब online आया हूँ। (यूसुफ देहलवी)

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मानहानी की अर्ज़ी अदालत मे लगाई है। पेशकार ने बिना जी-जनाब, नाम से आवाज़ लगाई है। खड़े है रुसवा होकर, सर झुकाएँ अदालत मे। जनाब ने हैसियत की रिपोर्ट मँगवायी है। Yusuf dehlvi ©Yusuf Dehlvi

#Luminance  मानहानी की अर्ज़ी अदालत मे लगाई है।
पेशकार ने बिना जी-जनाब, नाम से आवाज़ लगाई है।

खड़े है रुसवा होकर, सर झुकाएँ अदालत मे। 

जनाब ने हैसियत की रिपोर्ट मँगवायी है।

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©Yusuf Dehlvi

#Luminance

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मानहानी की अर्ज़ी अदालत मे लगाई है। पेशकार ने बिना जी-जनाब, नाम से आवाज़ लगाई है। खड़े है रुसवा होकर, सर झुकाएँ अदालत मे। जनाब ने हैसियत की रिपोर्ट मँगवायी है। Yusuf dehlvi ©Yusuf Dehlvi

 मानहानी की अर्ज़ी अदालत मे लगाई है।
पेशकार ने बिना जी-जनाब, नाम से आवाज़ लगाई है।

खड़े है रुसवा होकर, सर झुकाएँ अदालत मे। 

जनाब ने हैसियत की रिपोर्ट मँगवायी है।

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मानहानी की अर्ज़ी अदालत मे लगाई है। पेशकार ने बिना जी-जनाब, नाम से आवाज़ लगाई है। खड़े है रुसवा होकर, सर झुकाएँ अदालत मे। जनाब ने हैसियत की रिपोर्ट मँगवायी है। Yusuf dehlvi ©Yusuf Dehlvi

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यक़ीनी कुछ भी छपता नही अख़बार में। विज्ञापन देख रहे है हम तो समाचार में। ख़बर की तलाश मे चैनल बदल रहे है। पत्रकारिता बिक गयी TRP के बाज़ार में। यूसुफ देहलवी ©Yusuf Dehlvi

#typewriter  यक़ीनी कुछ भी छपता नही अख़बार में।
विज्ञापन देख रहे है हम तो समाचार में।

ख़बर की तलाश मे चैनल बदल रहे है।
पत्रकारिता बिक गयी TRP के बाज़ार में।

यूसुफ देहलवी

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क्या यूँ ही करती रहेंगीं ये आँखें तुम्हारी तलाश। तुम कब इन आँखों का सफर ख़त्म करोगी। क्या में यूँ ही मरता रहूँगा इस इश्क़ की आग में। तुम कब अपने लम्स से मुझे ज़िंदा करोगी। ©Yusuf Dehlvi

#meltingdown  क्या यूँ ही करती रहेंगीं ये आँखें तुम्हारी तलाश।
तुम कब इन आँखों का सफर ख़त्म करोगी।

क्या में यूँ ही मरता रहूँगा इस इश्क़ की आग में।
तुम कब अपने लम्स से मुझे ज़िंदा करोगी।

©Yusuf Dehlvi

भुलाने में तुझे थोड़ा वक़्त लग रहा हैं। तुझे क्या पता मेरा क्या हाल चल रहा हैं। सब धुँआ करके भी तुम चैन की साँस ले रही हों। मेरा खुली हवा में भी दम घुट रहा हैं। ©Yusuf Dehlvi

#fourlinepoetry  भुलाने में तुझे थोड़ा वक़्त लग रहा हैं।

तुझे क्या पता मेरा क्या हाल चल रहा हैं।


सब धुँआ करके भी तुम चैन की साँस ले रही हों।

मेरा खुली हवा में भी दम घुट रहा हैं।

©Yusuf Dehlvi

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