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प्यार मोहब्बत खुशियों का पैगाम है! मेरे तमाम दोस्तों को "मिश्रा" का सलाम है!!
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एक चाह बनी थी उड़ने की नभ में विचरण करने की तभी समय का तूफां आया बिना पंख का मुझे उड़ाया अति उत्साह मन भी मेरा आसमां को ही घर समझाया हर रोज वहां महफिल लगती हर रोज वहां अप्सराएं आती पराए भी अपने लोग बताते पर अपने मुझसे मुंह छुपाते बात जब तक समझ में आती मन से होकर दिमाग में जाती तब ही समय ने करवट ली आ कर धराम गिराया जमीं पे अपने दौड़े और मुझे संभाले बड़े प्यार से, फिर उन्होंने पाले अब बस चाह यही है रहने की धरा पे ही भ्रमण करने की ©कुन्दन मिश्रा
कुन्दन मिश्रा
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मैंने खामोशी से उसे चाहा था, पर उसने भीड़ बुला ली मुझे देखने बड़ी बारीकियों से ख्वाब तोड़ी वो, मैंने छुप छुपाकर सपने उधार दे दिए संदूक में बंद एक तरफा मोहब्बत, बिना चाभी के ताले कभी खोल देती है दिये तूफां में भी अब जलते रहते हैं, मंजूरी नहीं दी अंधेरों को अब ख्वाब देखने.... ©कुन्दन मिश्रा
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कर कोशिशें, चली साजिशें. फिर भी देख, मैं यहीं रहा. तुम फरेबी, धोखे के साएं पहचान कर भी मैं यहीं रहा... जमीं से आसमां, एक कर लो. कामयाबी के, बुलंदी पर जा. जब याद कोई आये तुझे अपने, तो पलट के देख लेना, मैं यहीं रहा... ©कुन्दन मिश्रा
आखों ने वो बयां नहीं की जो तुम्हारी लब्बों पे थी... वो तेजी से चलती हुयी सासें सब कुछ बता रही थी... हम करीब आए, पर उतने नहीं की एक हो सकें तुम जज़्बात रोक ली मगर धड़कन को नहीं जिसमें कोई और था... ये फरवरी का महीना और तुम्हारी हां में हां कहना जरुरत हो या हो कोई इम्तिहान... मेरे लिए वर्षों का एक वजूद जिसमें कभी अपनी अक्स देखने की उम्मीद थी... तुम समां तो सजा ली मगर उसे बांध ना पाई जिसमें कोई और था ©कुन्दन मिश्रा
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