मैं समझता हूं जितना मैं सही हूं
उससे ज्यादा तो मैं गलत हूं
मैं एहसास हूं जितना मैं एहसास करूं
उससे ज्यादा तो मैं ,बर्बाद हूं
मैं अमीर हूं,जितना मैं अमीरी करूं
उससे ज्यादा ,तो मैं फकीर हूं
मैं इंसान हूं जितना मैं इंसान बन सकूं
उससे ज्यादा तो मैं सैतान हूं
मैं एतबार हूं जितना मैं खुद से एतबार कर सकूं
उससे ज्यादा तो मैं धोखेबाज़ हूं
मैं मस्त हूं जितना मैं मस्ती कर सकूं
उससे ज्यादा तो मैं परेशान हूं मैं अपनी बस्ती में
मैं खुश हूं जितना मैं खुद को खुश रखूं
उससे ज्यादा तो मेरी कश्ती है मंझधार में
©एकलव्य
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