नियम हमारा-तुम्हारा नहीं
नियम हम सबका हो
सबकी भावनाओं का
सबके सम्मान का
हो,
नियम एक-दूसरे से अलग करने का नहीं
नियम सबको खुल के जीने का
सबको निष्पक्ष न्याय, चयन का
हो,
नियम स्त्री- पुरुष का नहीं
नियम मानवता का
सबके सर्वांगीण विकास का
हो,
नियम रूढ़ि-प्रथा का नहीं
नियम नयी सोच के साथ आगे बढ़ने का
सबकी संस्कृति परंपरा को समेटें
सबको साथ लेकर चलने का
हो,
नियम स्थायी नहीं
समय के साथ परिवर्तन का
सर्वधर्म सद्भाव का
हो।।
अमृता साहू ✍️..
©Amrita sahu
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