White एक ख़याल...
आखिर कितनी अपने बदन की, ज़ख्मों से अराइश करे
ये ही ज़िंदगी है तो कोई इसकी, क्यूँ ख़्वाहिश करे
कितनी बार मरता है, इक दिन जीने को यां आदमी
तुम कहते हो, वो ज़िंदगी की सबसे सताइश करे
जबसे बंद रहने लगे हैं, दरवाज़े घर के यहाँ
कैसे कोई इमदाद की, अपनों से गुज़ारिश करे
माना उनको हमसे नहीं रग़बत अब कोई, दिल मगर
उसको भूलने की किसी कोशिश पे, जो लरज़िश करे
इक वो ही अगर वज्ह हो ज़ख्मों की मिरे, तो कहो
आखिर किस बिना पे मिरा दिल, उसकी सिफ़ारिश करे
जब कोई समझ ही नहीं सकता, बात दिल की यहाँ
कैसे कोई जज़्बात की अपने, फिर निगारिश करे
मैं उसके तग़ाफ़ुल से, घाइल कितना हुआ हूँ मगर
ये दिल भी अज़ब है जो उस बुत की ही, परस्तिश करे
अराइश = सजावट
सताइश = तारीफ
इमदाद = मदद
लरज़िश = थरथराने/काँपने का भाव
निगारिश = तहरीर/आलेख/लिखा हुआ
परस्तिश = पूजा/इबादत
© कुमार दिनेश
©Kumar Dinesh
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