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बीते अतीत के पन्नों से गुजर रही
अचानक ठहर सी गई .......यादें,
कारंवा जो अनन्त सपनों के संग,
थाम चल रहा था कुछ उम्मीदें ,
निश्चल आकाश की परछाई ,
उतर आई थी जो अतल सागर पर,
हिलौरे लेते स्वपन की तरह ......
और मैं समेट रही थी उन ख्वाबों को
जो #हर_ख्वाब_सलीके_से_बिखरा_मेरे_आगे।
चंद ख्वाहिशें जो दामन मे समेट लाई संग ,
ए काश! कोई तो हो जो कहे ........
मै हूँ ना। खोल लो अपनी मुट्ठी ,
और दे दो अपने ख़्वाब जो अब
साकार करने है मुझे तुम संग ,
अपुर्ण ता को छोड़ पुर्णता को ,
मैं और मेरे ख़्वाब चल पड़े ,
संग उस के एक नई "निविद" ।।
Apeksha vyas
©Apekshavyas
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