प्रतिष्ठा

प्रतिष्ठा "प्रीत"

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White दर्द जब बेइंतहां बढ़ जाएगा, अश्क़ पीने का मज़ा आ जाएगा। मुझको रातों के अंधेरे डस गए, ज़हर सारे जिस्म में भर जाएगा। जिसको सींचोगे बदन के खून से, पौधा वो जड़ से जुदा हो जाएगा। छीन कर मेरे सहारे बेवफ़ा, क्या ख़ुशी की नेमतें पा जाएगा? नासमझ तू इस तरह नासमझी में, फ़ासले मुझसे बढ़ाता जाएगा। गलतियों का इल्म होगा जब तलक, वक़्त हाथों से निकल यूँ जाएगा। मैं धुआं बन कर कहीं खो जाऊंगी, हाथ मलता तू खड़ा रह जाएगा। तोड़ कर तूने मुझे है रख दिया, किस तरह मुझको समेटा जाएगा। ’प्रीत' आंधी में जला रख दीप तू, हौसला रख,रास्ता मिल जाएगा। प्रतिष्ठा ’प्रीत’ ©प्रतिष्ठा "प्रीत"

#hindi_poetry #my_feelings  White  दर्द जब बेइंतहां बढ़ जाएगा,

अश्क़ पीने का मज़ा आ जाएगा।


मुझको रातों के अंधेरे डस गए,

ज़हर सारे जिस्म में भर जाएगा।


जिसको सींचोगे बदन के खून से,

पौधा वो जड़ से जुदा हो जाएगा।


छीन कर मेरे सहारे बेवफ़ा,

क्या ख़ुशी की नेमतें पा जाएगा?


नासमझ तू इस तरह नासमझी में,

फ़ासले मुझसे बढ़ाता जाएगा।


गलतियों का इल्म होगा जब तलक,

वक़्त हाथों से निकल यूँ जाएगा।


मैं धुआं बन कर कहीं खो जाऊंगी,

हाथ मलता तू खड़ा रह जाएगा।


तोड़ कर तूने मुझे है रख दिया,

किस तरह मुझको समेटा जाएगा।


’प्रीत' आंधी में जला रख दीप तू,

हौसला रख,रास्ता मिल जाएगा।

प्रतिष्ठा ’प्रीत’

©प्रतिष्ठा "प्रीत"

by preet #my_feelings #hindi_poetry poetry in hindi

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ख़ामोशी गहराई कितनी, तन्हा है तन्हाई कितनी। रात के सूनेपन में मुझको, याद तुम्हारी आई कितनी। दिल की दीवारों से तेरी, तस्वीरें मिटवाई कितनी। जिन आँखों में बसता है तू, उनमें नींद समाई कितनी। ग़ौर किया मेरी बातों पर? बात समझ में आई कितनी। आज तुझे जो छू कर आई, महकी ये पुरवाई कितनी। 'प्रीत'तुम्हारे अंजुमन में, बरसी आज रुबाई कितनी। ©प्रतिष्ठा "प्रीत"

#nojotohindipoetry #MereKhayaal #MyThoughts #merealfaaz  ख़ामोशी गहराई कितनी,

तन्हा है तन्हाई कितनी।


रात के सूनेपन में मुझको,

याद तुम्हारी आई कितनी।


दिल की दीवारों से तेरी,

तस्वीरें मिटवाई कितनी।


जिन आँखों में बसता है तू,

उनमें नींद समाई कितनी।


ग़ौर किया मेरी बातों पर?

बात समझ में आई कितनी।


आज तुझे जो छू कर आई,

महकी ये पुरवाई कितनी।


'प्रीत'तुम्हारे अंजुमन में,
बरसी आज रुबाई कितनी।

©प्रतिष्ठा "प्रीत"

अलविदा कह ही गए तुम आख़िर, ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़िर। मैं भरी भीड़ में भी तन्हा हूँ, बात ये कह ही गए तुम आख़िर। वक़्त की रेत मेरे हाथों से, छीन कर ले ही गए तुम आख़िर। मैंने मंज़िल पे चाहा पहुँचाना, राह में खो ही गए तुम आख़िर। अश्क़-ए-नम हैं मेरी निगाहें भी, दर्द-से बह ही गए तुम आख़िर। अपना दामन छुड़ा के हाथों से, फ़ासले दे ही गए तुम आख़िर। "प्रीत" हर राज़ दफ़्न कर दिल में, संग दिल ले ही गए तुम आख़िर। ©®प्रतिष्ठा'प्रीत'

#yourquotedidi #MyThoughts #yourquote #myquotes  अलविदा कह ही गए तुम आख़िर,
ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़िर।

मैं भरी भीड़ में भी तन्हा हूँ,
बात ये कह ही गए तुम आख़िर।

वक़्त की रेत मेरे हाथों से,
छीन कर ले ही गए तुम आख़िर।

मैंने मंज़िल पे चाहा पहुँचाना,
राह में खो ही गए तुम आख़िर।

अश्क़-ए-नम हैं मेरी निगाहें भी,
दर्द-से बह ही गए तुम आख़िर।

अपना दामन छुड़ा के हाथों से,
फ़ासले दे ही गए तुम आख़िर।

"प्रीत" हर राज़ दफ़्न कर दिल में,
संग दिल ले ही गए तुम आख़िर।
©®प्रतिष्ठा'प्रीत'

तेरे गगन का,सितारा हूँ मैं, तेरी कश्ती का,किनारा हूँ मैं। छूट जाऊँगा तेरे हाथों से, जैसे पिघला हुआ,पारा हूँ मैं। आग ही आग मेरे दामन में, जलता-सा एक,शरारा हूँ मैं। गिर रहा ऊँचे पहाड़ों से कहीं, चोट खाता हुआ,धारा हूँ मैं। बह चला तेरी,लहर में ऐसे, तू है एक झील,शिकारा हूँ मैं। कामयाबी में,तेरी मैं जीता, तेरी हर हार में,हारा हूँ मैं। न समझना,तू अकेला ख़ुद को, 'प्रीत' अब तेरा,सहारा हूँ मैं। ©®प्रतिष्ठा"प्रीत"

#yiurquotedairy #yourquotedidi #yourwuotebaba #MyThoughts #myfeelings  तेरे गगन का,सितारा हूँ मैं,
तेरी कश्ती का,किनारा हूँ मैं।
छूट जाऊँगा तेरे हाथों से,
जैसे पिघला हुआ,पारा हूँ मैं।
आग ही आग मेरे दामन में,
जलता-सा एक,शरारा हूँ मैं।
गिर रहा ऊँचे पहाड़ों से कहीं,
चोट खाता हुआ,धारा हूँ मैं।
बह चला तेरी,लहर में ऐसे,
तू है एक झील,शिकारा हूँ मैं।
कामयाबी में,तेरी मैं जीता,
तेरी हर हार में,हारा हूँ मैं।
न समझना,तू अकेला ख़ुद को,
'प्रीत' अब तेरा,सहारा हूँ मैं।
©®प्रतिष्ठा"प्रीत"

तुम हो ....... अनकहे जज़्बात से, अनपढ़ी किताब से, अनगढ़ अक्षर से..... जिसे मैं ढालती हूँ जज़्बातों में, जिसे पढ़ती हूँ ...बस मैं ही, और ........... मैं ही उकेरती हूँ अक्षरों को ... जीवन के कोरे पन्नों पर, तभी तुम ,तुम बन पाते हो। ©®प्रतिष्ठा"प्रीत"

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तुम हो .......
अनकहे जज़्बात से,
अनपढ़ी किताब से,
अनगढ़ अक्षर से.....
जिसे मैं ढालती हूँ जज़्बातों में,
जिसे पढ़ती हूँ ...बस मैं ही,
और ...........
मैं ही उकेरती हूँ अक्षरों को ...
जीवन के कोरे पन्नों पर,
तभी तुम ,तुम बन पाते हो।
©®प्रतिष्ठा"प्रीत"

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सुनो! .............. लिखती हूँ तुम्हें रोज़, कोरे कागज पर .... और ख़ुद ही पढ़ लेती हूँ। उस पल होते हैं बस.... हम दोनों ही .... सुनहरे अक्षर से लिखे तुम, और सुधिजन सी मैं ... सिर्फ़ मैं ही पढ़ती हूँ तुम्हें, और शरमा कर......होठों से दोहराती हूँ, तुम्हारा नाम ....... और पलकें बन्द कर, नयनों में बसा लेती हूँ.... और उतार लेती हूँ, मन की गहराई में, जहां से पढ़ न सके तुम्हें कोई और .... ©®प्रतिष्ठा"प्रीत"

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सुनो! ..............
लिखती हूँ तुम्हें रोज़,
कोरे कागज पर ....
और ख़ुद ही पढ़ लेती हूँ।
उस पल होते हैं बस.... 
हम दोनों ही ....
सुनहरे अक्षर से लिखे तुम,
और सुधिजन सी मैं ...
सिर्फ़ मैं ही पढ़ती हूँ तुम्हें,
और शरमा कर......होठों से दोहराती हूँ,
तुम्हारा नाम .......
और पलकें बन्द कर,
नयनों में बसा लेती हूँ....
और उतार लेती हूँ,
मन की गहराई में,
जहां से पढ़ न सके तुम्हें
कोई और ....
©®प्रतिष्ठा"प्रीत"
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