क्या इसकी उपमा दे दूं,ये किसकी सानी लगती है
दूर खड़ी वह बच्ची,कुछ जानी पहचानी लगती है
पापा का अनमोल रतन मां की आंखों का तारा है
किससे मैं तुलना कर दूं,वह सूरज चांद सितारा है
गर में इसको चांद कहूं,तो यह झूठी तारीफ लगे
चांद लाग लेकर बैठ,ये सूरत मासूम सरीफ लगे
यदि इसको तारा ख दूं ,तो तारे टूटा करते है
इस चेहरे के आगे तो,सौ सूरज रूठा करते हैं
छोटी बाहों के घेरे में उसकी मां घूमा करती है
बाप बैठ जाता है तो वह,माथा चूमा करती है
वैसे तो वह कोई शहजादी सी लगती है
पर जब माथा चूमे ,तब दादी सी लगती है
मेरी नजरों में वह एक फूल नहीं है, चमन लगे
जो हर एक जगह फैला है,वह विस्तारित गगन लगे
ईश्वर का अनमोल रतन,अनमोल निशानी लगती है
दूर खड़ी वह बच्ची,कुछ जानी पहचानी लगती है
अर्पित अज्ञात
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