Kavita Vijaywargiya

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चलो हम एक निश्छल रिश्ता निभाते हैं शहरी दूरियों के अफसोस को छोड़ दिलों की नज़दिकियों की खुशियां मनाते हैं न रस्म होगी कोई न रिवाज होगा न अपने होंगे साथ न समाज होगा आओ हम मन ही मन इक दूजे को अपनाते हैं इक निश्छल रिश्ता निभाते हैं कविता

 चलो हम एक निश्छल रिश्ता निभाते हैं
शहरी दूरियों के अफसोस को छोड़
दिलों की नज़दिकियों की खुशियां मनाते हैं
न रस्म होगी कोई न रिवाज होगा
न अपने होंगे साथ न समाज होगा
आओ हम मन ही मन 
इक दूजे को अपनाते हैं 
इक निश्छल रिश्ता निभाते हैं

कविता

चलो हम एक निश्छल रिश्ता निभाते हैं शहरी दूरियों के अफसोस को छोड़ दिलों की नज़दिकियों की खुशियां मनाते हैं न रस्म होगी कोई न रिवाज होगा न अपने होंगे साथ न समाज होगा आओ हम मन ही मन इक दूजे को अपनाते हैं इक निश्छल रिश्ता निभाते हैं कविता

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कितना अधूरा हो जाता है कोई शख्स माता पिता के बिना है अब जाना कैसे गुजरते होंगे दिन उनके कैसे गुजरती होगी रैना कविता

#क़लम_ए_हयात #अधूरा_Qeh #yqurduhindipoetry #YourQuoteAndMine #yqbaba  कितना अधूरा हो जाता है कोई शख्स
माता पिता के बिना है अब जाना 
कैसे गुजरते होंगे दिन उनके
कैसे गुजरती होगी रैना 

कविता

👉🏻 प्रतियोगिता- 643 विषय 👉🏻 🌹"अधूरा"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I 🌟कृपया font size छोटा रखें जिससे wallpaper ख़राब नहीं लगे और Font color का भी अवश्य ध्यान रखें ताकि आपकी रचना visible हो। 🌟 पहले सावधानी पूर्वक "CAPTION" पढ़ें और दिए हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए अपने ख़ूबसूरत शब्दों एवं भावों के साथ अपने एहसास कहें।

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इन आंखों को आदत है सपनों में खो जाने की ज़माने को लगी है लत इन सपनों को तोड़ जाने की कविता

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ज़माने को लगी है लत इन सपनों को तोड़ जाने की

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स्नेह बिना सूना जीवन स्नेह बिना सूना संसार स्नेह न हो जहां अपनों में फिर बिन स्नेह कैसा परिवार कविता

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स्नेह बिना सूना संसार
स्नेह न हो जहां अपनों में
फिर बिन स्नेह कैसा परिवार

कविता

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गर्दिश में जब मिलोगे तो मंज़र कुछ ऐसा होगा चांद‌ , सूरज , नक्षत्रों के‌ साथ तारों भरा समंदर होगा जिस पल हम दोनों की हथेलियां टकरायेगी और आत्माएं सुलग जाएंगी तब समझना उठा कहीं इश्क का बवंडर होगा चांद , सूरज ,‌‌ नक्षत्रों के साथ तारों भरा समंदर होगा ।। कविता

 गर्दिश में जब मिलोगे
तो मंज़र कुछ ऐसा होगा
चांद‌ , सूरज , नक्षत्रों के‌ साथ 
तारों भरा समंदर होगा 
जिस पल हम दोनों की 
हथेलियां टकरायेगी 
और आत्माएं सुलग जाएंगी
तब समझना उठा कहीं 
इश्क का बवंडर होगा
चांद , सूरज ,‌‌ नक्षत्रों के साथ
तारों भरा समंदर होगा ।।

कविता

गर्दिश में जब मिलोगे तो मंज़र कुछ ऐसा होगा चांद‌ , सूरज , नक्षत्रों के‌ साथ तारों भरा समंदर होगा जिस पल हम दोनों की हथेलियां टकरायेगी और आत्माएं सुलग जाएंगी तब समझना उठा कहीं इश्क का बवंडर होगा चांद , सूरज ,‌‌ नक्षत्रों के साथ तारों भरा समंदर होगा ।। कविता

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स्त्रियां जब अपने मन‌ भीतर झांकती हैं तब जाकर वो एक अलग स्वरूप में आती हैं मॉं पार्वती ने गर खुद के भीतर न झांका होता वो कैसे बन पातीं मॉं गौरा से काली माता कविता

 स्त्रियां जब अपने मन‌ भीतर झांकती हैं
तब जाकर वो एक अलग स्वरूप में आती हैं

मॉं पार्वती ने गर खुद के भीतर न झांका होता
वो कैसे बन पातीं मॉं गौरा से काली माता

कविता

स्त्रियां जब अपने मन‌ भीतर झांकती हैं तब जाकर वो एक अलग स्वरूप में आती हैं मॉं पार्वती ने गर खुद के भीतर न झांका होता वो कैसे बन पातीं मॉं गौरा से काली माता कविता

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