पापा की परी कभी जो थी
आज बेकार हो चली है।
जिसे कभी बैठना डोली पर था
आज वो गुनहगार हो चली है।।
उस 🚆 (ट्रेन) के डब्बे को सारी रात
छाना गया जिसपर बैठ कभी
पूरा सफर मस्ती किया करते थे,
उसे चिढ़ाया करते थे उसे रुलाया
करते थे,,
जो कभी मेरे ना हसने पर रूठ जाया करती थी!
वो नासमझ अब समझदार हो चली है,
जिसे बैठना कभी डोली पर था,
आज वो बेटी गुनहगार हो चली है।।
जो भाई अपने शौख को आजिमेसफर रखता था,
खुद बेखबर होके उसकी खबर रखता था
उसे तनिक परवाह नही उस भाई के खयाल का
वो नादान थी पर अब उसके ख्यालात बदल चुके थे
उसे समझ नही इस दुनिया के फरेब का
वो धीरे- धीरे बेकुसूर से कुसुरबार हो चली है
जिसे बैठना कभी डोली पर था
वो बेटी आज गुनहगार हो चली है
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