Om Prakash Kumar

Om Prakash Kumar Lives in Srinagar, NA, NA

मैं फूल हूँ, पतझड़ में खो जाऊँगा। पर, मेरी खुशबू वर्षो फ़िज़ा में रहेगी।।

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वह जो भाग रहा है, जरा पूछो बदहवास क्यों है। आज तो खुशी का मौका है, फिर उदास क्यों है।। सारे रास्ते भी दौड़ रहे हैं और राही भी परेशान हैं। गर सब ठीक है, फिर मौत का अहसास क्यों है।। कलतक एक हुज़ूम हुआ करता था इन रास्तों पर। आज सारा सुनसान है, ऐसा गहरा आघात क्यों है।। यह कैसा शहर है ना कहीं शोर, ना कोई हलचल है। गर हर तरफ़ मायूसी है, फिर मन में विश्वास क्यों है।। एक वक़्त था जब मेरे मन में राम बसा करते थे। अब इसमें रावण है, इतना विरोधाभास क्यों है।। यहाँ सभी अपने चेहरे ना जाने क्यों छुपा रक्खे हैं। गर हवाओं में जहर है, फिर फल में मिठास क्यों है।। आँखें खुली हो या बंद सिर्फ़ तेरा ही दीदार होता है। गर इतने करीब हैं, फिर खोने का आभास क्यों है।। मुझे दिल में बसाते हैं तो कभी ये जान लुटाते हैं। गर सभी अपने है, फिर रिश्तों में खटास क्यों है।। यह जमाना कितना मतलबी हो गया है 'ओम'। गर बेटें साथ हैं, फिर माँ सोती उपवास क्यों है।। -ओम प्रकाश

#stay_home_stay_safe  वह जो भाग रहा है, जरा पूछो बदहवास क्यों है।
आज तो खुशी का मौका है, फिर उदास क्यों है।।

सारे रास्ते भी दौड़ रहे हैं और राही भी परेशान हैं। 
गर सब ठीक है, फिर मौत का अहसास क्यों है।।

कलतक एक हुज़ूम हुआ करता था इन रास्तों पर।
आज सारा सुनसान है, ऐसा गहरा आघात क्यों है।।

यह कैसा शहर है ना कहीं शोर, ना कोई हलचल है।
गर हर तरफ़ मायूसी है, फिर मन में विश्वास क्यों है।।

एक वक़्त था जब मेरे मन में राम बसा करते थे।
अब इसमें रावण है, इतना विरोधाभास क्यों है।।

यहाँ सभी अपने चेहरे ना जाने क्यों छुपा रक्खे हैं।
गर हवाओं में जहर है, फिर फल में मिठास क्यों है।।

आँखें खुली हो या बंद सिर्फ़ तेरा ही दीदार होता है।
गर इतने करीब हैं, फिर खोने का आभास क्यों है।।

मुझे दिल में बसाते हैं तो कभी ये जान लुटाते हैं।
गर सभी अपने है, फिर रिश्तों में खटास क्यों है।।

यह जमाना कितना मतलबी हो गया है 'ओम'।
गर बेटें साथ हैं, फिर माँ सोती उपवास क्यों है।।

-ओम प्रकाश

वह जो भाग रहा है, जरा पूछो बदहवास क्यों है। आज तो खुशी का मौका है, फिर उदास क्यों है।। सारे रास्ते भी दौड़ रहे हैं और राही भी परेशान हैं। गर सब ठीक है, फिर मौत का अहसास क्यों है।। कलतक एक हुज़ूम हुआ करता था इन रास्तों पर। आज सारा सुनसान है, ऐसा गहरा आघात क्यों है।।

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कोरोना है बाहर, आपके इंतज़ार में। 😷😷😷😷😷 कुछ दिन तो गुजारिये, अपने घर में।। 😍😍😍😍😍

#stay_home_stay_safe  कोरोना है बाहर, आपके इंतज़ार में।
😷😷😷😷😷

कुछ दिन तो गुजारिये, अपने घर में।।
😍😍😍😍😍

रहें अपने-अपने घर के अंदर। 😷😷😷😷😷 अन्यथा, कहलाएंगे कुत्ता-बंदर।। 😂😁😂😁😂

#stay_home_stay_safe  रहें अपने-अपने घर के अंदर। 
😷😷😷😷😷

अन्यथा, कहलाएंगे कुत्ता-बंदर।।
😂😁😂😁😂

इस बेरंग-सी दुनियाँ में कहाँ जाए। अपने घर ना जाए, तो कहाँ जाए।। अब, जब हर तरफ़ मौत का मंज़र है। ऐसे आलम में कोई, और कहाँ जाए।।

#stay_home_stay_safe #aur_kaha_jaye  इस बेरंग-सी दुनियाँ में कहाँ जाए।
अपने घर ना जाए, तो कहाँ जाए।।
अब, जब हर तरफ़ मौत का मंज़र है।
ऐसे आलम में कोई, और कहाँ जाए।।

एक इश्क़, कभी इश्क़ में, अपने इश्क़ को, अपने इश्क़ से सजा देता है। फिर वही इश्क़, अपने इश्क़ को, अपने इश्क़ से, उसके इश्क़ की सज़ा देता है।। -ओम प्रकाश कुमार

#शायरी  एक इश्क़, कभी इश्क़ में,
अपने इश्क़ को, अपने इश्क़ से सजा देता है।
फिर वही इश्क़, अपने इश्क़ को,
अपने इश्क़ से, उसके इश्क़ की सज़ा देता है।।

-ओम प्रकाश कुमार

एक इश्क़, कभी इश्क़ में, अपने इश्क़ को, अपने इश्क़ से सजा देता है। फिर वही इश्क़, अपने इश्क़ को, अपने इश्क़ से, उसके इश्क़ की सज़ा देता है।। -ओम प्रकाश कुमार

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भोले की जटा से निकलती गंगा की धारा है। जिसने सारी श्रृष्टि को तारा है।। भोले का ही वह दिव्य प्रकाश है। जो करता रौशन पूरी धरती और आकाश है।। -ओम प्रकाश कुमार

#शायरी #Maha_shivratri  भोले की जटा से निकलती गंगा की धारा है।
जिसने सारी श्रृष्टि को तारा है।।
भोले का ही वह दिव्य प्रकाश है। 
जो करता रौशन पूरी धरती और आकाश है।।

-ओम प्रकाश कुमार
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