वह जो भाग रहा है, जरा पूछो बदहवास क्यों है।
आज तो खुशी का मौका है, फिर उदास क्यों है।।
सारे रास्ते भी दौड़ रहे हैं और राही भी परेशान हैं।
गर सब ठीक है, फिर मौत का अहसास क्यों है।।
कलतक एक हुज़ूम हुआ करता था इन रास्तों पर।
आज सारा सुनसान है, ऐसा गहरा आघात क्यों है।।
यह कैसा शहर है ना कहीं शोर, ना कोई हलचल है।
गर हर तरफ़ मायूसी है, फिर मन में विश्वास क्यों है।।
एक वक़्त था जब मेरे मन में राम बसा करते थे।
अब इसमें रावण है, इतना विरोधाभास क्यों है।।
यहाँ सभी अपने चेहरे ना जाने क्यों छुपा रक्खे हैं।
गर हवाओं में जहर है, फिर फल में मिठास क्यों है।।
आँखें खुली हो या बंद सिर्फ़ तेरा ही दीदार होता है।
गर इतने करीब हैं, फिर खोने का आभास क्यों है।।
मुझे दिल में बसाते हैं तो कभी ये जान लुटाते हैं।
गर सभी अपने है, फिर रिश्तों में खटास क्यों है।।
यह जमाना कितना मतलबी हो गया है 'ओम'।
गर बेटें साथ हैं, फिर माँ सोती उपवास क्यों है।।
-ओम प्रकाश
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here