विनय शुक्ल 'अक्षत'

विनय शुक्ल 'अक्षत'

गोंडा से ओज कवि / संयोजक 8052872713,7459981178whatsapp

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सच के साथ खड़े रहने की कीमत बहुत चुकाई है। ऐसे ही थोड़ी ये दुनियाँ साथ हमारे आई है। शहद बनाने वाली मक्खी डंक मारती है अक्सर, बच के रहना उनसे जिनके लब पे बहुत मिठाई है। चूम ही लेते अधर तुम्हारे ये अनछुए अगर होते, कुल्हड़ की मर्यादा सच्ची तू गिलास हरजाई है। ग़ैरों से शिकवा कैसा ग़ैरों ने सिर्फ हवा दी है, ये अपनों की साज़िश थी अपनों ने आग लगाई है। मेरे ग़म से इतनी भी दिलचस्पी क्यों दुनियाँ वालों, मेरा सर है उसका पत्थर तुमको क्या कठिनाई है। जिसे ग़ज़ल कहती है दुनियाँ वह पीड़ा का है दर्शन, ये शायर के दिल से पूछो इक कड़वी सच्चाई है। अपनी परछाई से भी 'नाचीज़' भरोसा टूट रहा, राम -भरत सा प्यार कहाँ , भाई का दुश्मन भाई है। ✍ जे0 पी0 'नाचीज़'

 सच के साथ खड़े रहने की कीमत बहुत चुकाई है।
ऐसे  ही   थोड़ी  ये  दुनियाँ  साथ  हमारे  आई  है।

शहद बनाने वाली  मक्खी  डंक मारती है अक्सर,
बच के रहना उनसे जिनके लब पे बहुत मिठाई है।

चूम ही लेते  अधर  तुम्हारे ये  अनछुए  अगर होते,
कुल्हड़ की मर्यादा  सच्ची  तू  गिलास  हरजाई है।

ग़ैरों  से  शिकवा  कैसा  ग़ैरों  ने सिर्फ  हवा  दी  है,
ये अपनों की साज़िश थी अपनों ने आग लगाई है।

मेरे ग़म से इतनी भी दिलचस्पी क्यों  दुनियाँ वालों,
मेरा सर है उसका  पत्थर तुमको क्या  कठिनाई है।

जिसे ग़ज़ल कहती है दुनियाँ वह पीड़ा का है दर्शन,
ये शायर के  दिल  से  पूछो  इक कड़वी  सच्चाई है।

अपनी  परछाई  से  भी  'नाचीज़'  भरोसा  टूट  रहा,
राम -भरत  सा  प्यार कहाँ , भाई का दुश्मन भाई है।

✍ जे0 पी0 'नाचीज़'

जे पी नाचीज की गज़ल

9 Love

जब अंतस्तल रोता है, कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ? इन टूटे से तारों पर, मैं कौन तराना गाऊँ?? सुन लो संगीत सलोने, मेरे हिय की धड़कन में। कितना मधु-मिश्रित रस है, देखो मेरी तड़पन में॥ यदि एक बार सुन लोगे, तुम मेरा करुण तराना। हे रसिक! सुनोगे कैसे? फिर और किसी का गाना॥ कितना उन्माद भरा है, कितना सुख इस रोने में? उनकी तस्वीर छिपी है, अंतस्तल के कोने में॥ मैं आँसू की जयमाला, प्रतिपल उनको पहनाती। जपती हूँ नाम निरंतर, रोती हूँ अथवा गाती॥ सुभद्राकुमारी चौहान

 जब अंतस्तल रोता है, 
कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?
इन टूटे से तारों पर, 
मैं कौन तराना गाऊँ??

सुन लो संगीत सलोने, 
मेरे हिय की धड़कन में।
कितना मधु-मिश्रित रस है, 
देखो मेरी तड़पन में॥

यदि एक बार सुन लोगे, 
तुम मेरा करुण तराना।
हे रसिक! सुनोगे कैसे?
फिर और किसी का गाना॥

कितना उन्माद भरा है, 
कितना सुख इस रोने में?
उनकी तस्वीर छिपी है, 
अंतस्तल के कोने में॥

मैं आँसू की जयमाला, 
प्रतिपल उनको पहनाती।
जपती हूँ नाम निरंतर, 
रोती हूँ अथवा गाती॥

सुभद्राकुमारी चौहान

गीत

10 Love

हम नहीं डरते तिमिर के ज़ोर से , अन्ततः हम जा मिलेंगे भोर से । आपकी निष्ठा अभी संदिग्ध है , सच बताएं आप हैं किस ओर से । हम चले आते हैं खिंचकर आप तक , हम बंधे हैं प्रीति वाली डोर से । लूटने को आ गए डाकू कई , मुक्ति हमको मिल गई जब चोर से । वो हमें कब तक करेंगे अनसुना , आइये हम और चीखें ज़ोर से । मन के कोलाहल से बचने के लिए , हम मिले हैं दुनिया भर के शोर से । शम्स कुछ भी तो नहीं बोले मगर , कह दिया सब कुछ नयन की कोर से । - डॉ. दिनेश त्रिपाठी' शम्स'

 हम नहीं डरते तिमिर के ज़ोर से ,
अन्ततः हम जा मिलेंगे भोर से ।
आपकी निष्ठा अभी संदिग्ध है ,
सच बताएं आप हैं किस ओर से ।
हम चले आते हैं खिंचकर आप तक ,
हम बंधे हैं प्रीति वाली डोर से ।
लूटने को आ गए डाकू कई ,
मुक्ति हमको मिल गई जब चोर से ।
वो हमें कब तक करेंगे अनसुना , 
आइये हम और चीखें ज़ोर से ।
मन के कोलाहल से बचने के लिए ,
हम मिले हैं दुनिया भर के शोर से ।
शम्स कुछ भी तो नहीं बोले मगर ,
कह दिया सब कुछ नयन की कोर से ।
- डॉ. दिनेश त्रिपाठी' शम्स'

Dr dinesh tripathi

9 Love

आंच नहीं आने देंगे देश की परंपरा पे, गंगा और यमुना का पानी नहीं भूलेंगे। भूलेंगे नहीं कभी भी बंदा वैरागी और उधम के शौर्य की कहानी नहीं भूलेंगे। बात भूलने की बार बार आप करें किंतु, हम देश भक्तों की निशानी नहीं भूलेंगे। भूल जाएं भले हम सारी कुर्बानियों को, पन्ना धाय माँ की कुर्बानी नहीं भूलेंगे। विनय अक्षत

 आंच नहीं आने देंगे देश की परंपरा पे, 
गंगा और यमुना का पानी नहीं भूलेंगे। 
भूलेंगे नहीं कभी भी बंदा वैरागी और 
उधम के शौर्य की कहानी नहीं भूलेंगे। 
बात भूलने की बार बार आप करें किंतु, 
हम देश भक्तों की निशानी नहीं भूलेंगे। 
भूल जाएं भले  हम सारी कुर्बानियों को, 
पन्ना धाय माँ की कुर्बानी नहीं भूलेंगे।

विनय अक्षत

छंद

9 Love

"vinay akshat" ... A YouTube channel of hindi poetry

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10 Love

गगन में टूटता हमने कभी तारा नहीं देखा । बसा करके तुम्हें आँखों में दोबारा नहीं देखा। ये छायी लालिमा आँखों में मेरी देखते हैं सब, बदन के ताप से पिघला हुआ पारा नहीं देखा। परिंदे फड़फड़ाते हैं वहीं इस दौर में अक्सर, जिन्होंने दूर तक फैला जहाँ सारा नहीं देखा। थके हारे हुए मन से यही तो सोचते हैं सब, कि अपने आप सा हमने कोई हारा नहीं देखा। समन्दर की सदा पा कर नदी जो भूल जाते हैं, हमें लगता उन्होंने प्यास का मारा नहीं देखा। विनय शुक्ल 'अक्षत '

 गगन में टूटता हमने  कभी तारा नहीं देखा । 
बसा करके तुम्हें आँखों में दोबारा नहीं देखा। 

ये छायी लालिमा आँखों में मेरी देखते हैं सब, 
बदन के ताप से पिघला हुआ पारा नहीं देखा।

परिंदे फड़फड़ाते हैं वहीं इस दौर में अक्सर, 
जिन्होंने दूर तक फैला जहाँ सारा नहीं देखा। 

थके हारे हुए मन से यही तो सोचते हैं सब, 
कि अपने आप सा  हमने कोई हारा नहीं देखा। 

समन्दर की सदा पा कर नदी जो भूल जाते हैं, 
हमें लगता उन्होंने प्यास का मारा नहीं देखा। 

विनय शुक्ल 'अक्षत '

ग़ज़ल

12 Love

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