कुछ ख्वाहिशे हमारी और कुछ ख्वाब मां पापा के समेटकर एक नए शहर में खुशियां तलाशने लगे हैं
और क्या करे यार अब तो अपने शहर भी बस महमान की तरह आने लगे हैं
खुद लेकर एक गिलास पानी न पीने वाले बच्चे अब तो खाना भी खुद ही बनाने लगे हैं
कुछ सपने हैं जो उन्हें रातों को भी जगाने लगे हैं
अब तो अपने शहर भी बस मेहमान की तरह आने लगे हैं
काश जिंदगी एक किताब होती
पढ़ सकते कि आगे क्या होगा?
क्या मिलेगा और क्या खोएगा?
कब खुश होंगे और कब दिल रोयेगा?
काश फाड़ सकती उन पन्नो को जिन्होंने रुलाया है
और जोड़ सकती कुछ लम्हों को जिन्होंने मुझे हसाया है,
जान तो पति की क्या खोया और क्या पाया है?
टूटे सपनो को फिर से सजाती
कुछ पल के लिए मैं भी मुस्कुराती
काश जिंदगी एक किताब हो जाती
चाँद भी क्या खूब है,
न सर पर घूंघट है,
न चेहरे पे बुरखा,
कभी करवाचौथ का हो गया,
तो कभी ईद का,
ज़मीन पर होता तो टूटकर विवादों मे होता,
अदालत की सुनवाइयों मे होता,
अखबार की सुर्ख़ियों में होता,
शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है ।
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