मैं उसके हर सवाल का जवाब बनूं,
वो देखे मुझे मैं ख्वाब बनूं ,
जो मुस्कुराए तो वजह मैं बनूं,
जिसे हरदम पढ़ना चाहे मैं वो किताब बनूं ।
वो कदम जहां रखे मैं वो खाक बनूं ,
जिसे वो सबसे छुपाए मैं वो राज़ बनूं।
कभी माथे की रखड़ी ,
कभी पैरों की पायल ,
जो वो ओढ़ कर घूमे मैं वो श्रृंगार बनूं।
आइना बनूं,
वो निहारे मुझे ।
मैं जुल्फ बनूं,
वो संवारे मुझे ।
मैं चांद बनूं,कभी सांझ बनूं
कोई नाम बनूं
वो पुकारे मुझे ।
और इस बार जो हुआ सो हुआ
ए खुदा बस इतना करम कर,
के अगले जनम,
सिर्फ मैं ही उसका हकदार बनूं।।
©sunita acharya
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