जो बीत गया, उसे भूल जाते है
चलो, नई राह पर बढ़ जाते है।
नवीन द्वार खुल रहे है
बुला हमे रहे है
पलके बिछाये, खींच रहे अपनी ओर
दिशाहीन समाज, जाना भी चाहता उस ओर।
पर प्रवेश के पूर्ण एक शर्त रखी है
शर्त स्वाभाविक, आत्म चिंतन के लिए रखी है
भय, चिंता और निदाघ को तुम्हे त्यागना होगा
जो प्रतिकूल परिस्थितिया देखी, उसे भुलाना होगा।
माना जो जटिलताएँ देखी, उसे भुलाना सरल नही
जिन्हें अपनो को खोया, उनके बिना चलना सरल नही।
पर हर स्याह तिमिर से लड़ने के लिए
एक दीप एक ज्योति अवश्य होती है
अवसाद का अंधकार जितना गहरा हो
उम्मीद की एक किरण अवश्य होती है।
नया साल, उसी उम्मीद की ज्वाला है
जो हो गया, उसे भूलने में ही भला है।
प्रभंजन से अब मुक्त होना होगा
सबको साथ लेकर, प्रवेश करना होगा
'सुस्वागतम' 'जश्न' का अर्थ समझते हुए
हम सब को फिर से मुस्कुराना होगा।
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