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Poet by Default!! youtube: KaushalAlmora
https://youtube.com/watch?v=W0_Ie6iu46U&feature=shares
Kaushal Almora
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कब फसीलों से वास्ता हुआ पता ना चला दो हज़ार बीस कब हवा हुआ पता ना चला कि चल रही थी ज़िन्दगी रफ़्तार से अपनी कब हकीमों का दबदबा हुआ पता ना चला मिलना-जुलना ज़रूरी रहा नहीं अब किसी से किस कदर ये फासला हुआ पता ना चला ना खुशबू ना ज़ायका था कुछ साँसे तेज़ थी था मर्ज़,वहम या नजला हुआ पता ना चला इक्कीस में लिखेंगे नयी इबारतें ये उम्मीद है बीस तो कब आया और गया पता ना चला ©Kaushal Almora
12 Love
ऐ साल जाते जाते कुछ अच्छा दे जा नुकसान हुआ बहुत कुछ नफा दे जा झुलस रहे हैं लोग इक मर्ज़ की आग में इससे निपटने का कोई करिश्मा दे जा मैं जानता हूँ नुक़्स और काबिलियत अपनी तू मुझे बस कोई हसीं मुकाबला दे जा कब तक रहे रूहों में सलवटें नफरतों की जाते-जाते दिसम्बर में जून का मजा दे जा साज कुछ नये कुछ तरन्नुम नयी-नयी सी कुछ रौशन उम्मीदों का सिलसिला दे जा ऐ साल जाते जाते कुछ अच्छा दे जा! ©Kaushal Almora
मुझमें गहरे उतरोगे तो यकीनन डूब जाओगे समन्दर से दोस्ती के पहले तैराकी सीख लो.. ©KaushalAlmora
15 Love
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