सुनो रूह अपनी बसी, गांव में है
असल में तो अपनी ख़ुशी, गांव में है।
सभी झूठ है मुस्कुराहट जहाँ में
मग़र सच यही है हँसी, गांव में है।
जिसे चैन इक पल नहीं हो कभी भी
वही बस वही इक दु:खी, गांव में है
शहर से निकलकर बसे गांव में हम
कसम से कहें हम सुखी, गांव में हैं।
रजनीश कुमार झा।
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