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राकेश मुदगिल
बदलता रहता है मौसम अपना लिबास बारह मास मिट्टी की खुद्दारी वही रही ©Rakesh Mudgil
Rakesh Mudgil
13 Love
हर मोड़ पे तुझको याद किया वक्त अपना यूं ही बर्बाद किया तुझे तो शहराह छोड़ दिया खुद तेरी गली शमशाद किया ©Rakesh Mudgil
8 Love
बस एक छोटी सी बदगुमानी ने आशियाना जला दिया है, बस इक ज़रा सी हवा चली तो चराग़ ए दिल क्यूं बुझा दिया है। खड़े हैं हम कब से रहगुज़र में कभी पलट कर पुकार लेते बस एक मौका दिया जो होता तो हम नशेमन सवांर लेते ©Rakesh Mudgil
14 Love
कब तक मैं खुद में ही तुझे ढुंढा करुं भला अब तू भी आइने के इधर चाहिए मुझे ©Rakesh Mudgil
11 Love
लब ओ रुखसार तो क्या चश्म ए स्याह भी उसकी अब तो मैं भूल गया सालगिरह भी उसकी उसने जो ज़ख़्म लगाए थे भरे जाने लगे और फिर भरने लगी खाली जगह भी उसकी ©Rakesh Mudgil
12 Love
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