Rajneesh Kumar

Rajneesh Kumar Lives in Chandigarh, Chandigarh, India

लफ्ज़ दर लफ्ज़ || सफ़ा दर सफ़ा

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मैकशी सोलह बरस की हो गई है ज़िंदगी यूँ ही गुज़ारी आ भी जाओ जिस हवेली पर बहारें मेहरबाँ थीं ढह गई सारी की सारी आ भी जाओ धुन सुनाओ बांसुरी की ए मुरारी चार सू है मारा मारी आ भी जाओ ©Rajneesh Kumar

#ghazal  मैकशी  सोलह  बरस  की  हो गई है
ज़िंदगी यूँ ही  गुज़ारी  आ भी जाओ

जिस  हवेली  पर  बहारें  मेहरबाँ थीं
ढह गई सारी की सारी आ भी जाओ








धुन  सुनाओ  बांसुरी  की  ए  मुरारी
चार सू है  मारा मारी  आ भी जाओ

©Rajneesh Kumar

#ghazal se

16 Love

#love_shayari  White कभी  कभी   जो   तिरे   क़ुर्ब  में   गुज़ारे  थे
अब  उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं

गुज़र रहे हैं अजब मरहलों से दीदा-ओ-दिल
सहर की आस  तो है  ज़िंदगी की आस नहीं

मुझे  ये  डर  है  तिरी  आरज़ू  न  मिट  जाए
बहुत  दिनों से  तबीअ'त  मिरी  उदास  नहीं

नासिर काज़मी

©Rajneesh Kumar

#love_shayari

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न जाने क्या तुम्हें बतला रही होगी ये दुनिया मेरी सब ख़ामियां गिनवा रही होगी ये दुनिया ©Rajneesh Kumar

#ghazal  न जाने क्या तुम्हें बतला रही होगी ये दुनिया
मेरी सब ख़ामियां गिनवा रही होगी ये दुनिया

©Rajneesh Kumar

#ghazal se

15 Love

अव्वल तू ये मान के हैं ये मसले ज़ुबान के हैं ©Rajneesh Kumar

 अव्वल  तू ये मान के हैं
ये  मसले  ज़ुबान के हैं

©Rajneesh Kumar

अव्वल तू ये मान के हैं ये मसले ज़ुबान के हैं ©Rajneesh Kumar

10 Love

हमारे शहर की गलियां बहुत ही तंग हैं लेकिन हमारे शहर ने सातों समंदर आज़माए हैं ©Rajneesh Kumar

#ghazal  हमारे शहर की गलियां बहुत ही तंग हैं लेकिन
हमारे  शहर  ने  सातों   समंदर  आज़माए  हैं

©Rajneesh Kumar

#ghazal se

15 Love

पत्थरों से रहम की दरकार मुझको खा गई और ये दरिया-दिली भी यार मुझको खा गई ©Rajneesh Kumar

#ghazal  पत्थरों से रहम की  दरकार  मुझको खा गई
और ये दरिया-दिली भी यार मुझको खा गई

©Rajneesh Kumar

#ghazal

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