पुल जोड़ते थे 'काफ़िर' इसलिए ढहा दिए गए
दीवारें बांटती थी तभी आसमाँ छूती दिखाई दी
शिखर गुरूर सिखाते थे इसलिए सर ऊंचा कर रहे
सड़के एक करती थी सबको जो टूटी दिखाई दी
खिड़की तरसाती थी मिलन को तभी खुली दिखी
दरवाजे वस्ल के मुंतजिर थे उनपे खूंटी दिखाई दी
भूख गुनहगार बनाती थी इसलिए बढ़ती ही रही
इज्जत ने रिश्ते कायम किये जो लूटी दिखाई दी
#काफ़िर
पुल जोड़ते थे 'काफ़िर' इसलिए ढहा दिए गए
दीवारें बांटती थी तभी आसमाँ छूती दिखाई दी
शिखर गुरूर सिखाते थे इसलिए सर ऊंचा कर रहे
सड़के एक करती थी सबको जो टूटी दिखाई दी
खिड़की तरसाती थी मिलन को तभी खुली दिखी
दरवाजे वस्ल के मुंतजिर थे उनपे खूंटी दिखाई दी
भूख गुनहगार बनाती थी इसलिए बढ़ती ही रही
इज्जत ने रिश्ते कायम किये जो लूटी दिखाई दी
#काफ़िर
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हम अकेले नही 'काफ़िर' जो अकेले चले जा रहे है
और वो है कि इस अकेलेपन पे भी जले जा रहे है
#काफ़िर
रंग मेहनत का हर किसी को रास नही आता
दिल में गिरके फिर उठने का विश्वास नही आता
पैरों को आसमाँ में जमाए बैठा है वो शक़्स जो
समंदर से पूछता है साहिल क्यों पास नही आता
पतझड़ दुबक गई है गर्मी को दर पे आते देखकर
तभी तो चर्ख पे सूरज पहले सा उदास नही आता
सूने पड़े रहते है पन्ने इंसानों के दिलो से 'काफ़िर'
और कलम की निगाहों में भी उल्लास नही आता
#काफ़िर
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