White संवेदना शून्य मन लेकर , अस्तित्व विहीन जिस्म लिए,
चलती जा रही थी मैं, अपने भीतर एक तिलिस्म लिए,
दिल में दबे अरमान, ख्वाब बनकर डराया करते थे,
मुझे आइना दिखाने को, रोज रात को आया करते थे,
किसे गरज़ थी कि मेरे दिल का हाल जाने,
बस घर के चूल्हा, चौका,बर्तन, मेरे जीने के थे बहाने,
एक दिन एक ख्वाब चुपके से, मेरे कानो में फुसफुसाया,
इस बेमतलब सी जिंदगी में, क्या क्या हैं तूने गवाया,
तुम सक्षम हो अपने वजूद को एक बार तो पहचानो,
मत ज़ख्म दो दिल को, एक बार तो दिल की मानो,
निकाल दो मन से अपने, एक बार तो गुबार सारा,
फ़िर देखो कैसे मिटता हैं, जो फैला हैं अँधियारा,
मिट गई थी उस दिन,मेरे ख़्वाबों पे जमी सारी धूल,
मेरे दिल की दुआ ख़ुदा के दर पर, हो गई थी कुबूल,
उठा कर क़लम, मैंने दिल को खोल कर रख दिया,
इस दिल की किताब का,हर लफ़्ज़ तौल कर रख दिया।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here