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White क्षितिज के उस पार उड़ कर पहुंचने की आस हैँ आदमी को. सदियों से लगता हैँ उसे कहीं अपने कमज़ोर पंखो पर भरपूर भरोसा न आ गया हो ©Parasram Arora

 White क्षितिज के उस पार  
उड़ कर पहुंचने
की आस हैँ  आदमी   को.
सदियों से 

लगता हैँ उसे 
कहीं अपने कमज़ोर  पंखो पर 
भरपूर भरोसा   न आ गया हो

©Parasram Arora

उस पार

16 Love

Maa कहाँ हो लिखो माँ कभी तो मिलो माँ कैसी हो बताओ माँ मिलने तो आओ माँ कितनी दूर हो माँ मेरे पास आओ माँ हर सांस पर कर्ज है तेरा माँ फिर से चुकाने का मौका दो माँ जिंदगी में नहीं सोचा था कभी माँ आप भी मुझे छोड़ कर चलीं जाएंगी माँ ©DR. LAVKESH GANDHI

 Maa  कहाँ हो लिखो माँ 
कभी तो मिलो माँ 
कैसी हो बताओ माँ 
मिलने तो आओ माँ 
कितनी दूर हो माँ 
मेरे पास आओ माँ 
हर सांस पर कर्ज है तेरा माँ 
फिर से चुकाने का मौका दो माँ
जिंदगी में नहीं सोचा था कभी माँ 
आप भी मुझे छोड़ कर चलीं जाएंगी माँ

©DR. LAVKESH GANDHI

#माँ # #मेरी माँ कहाँ हो #

16 Love

White प्राणो मे ज़ब तक साँसों की ज्योति जलती रहेगी. तुम तो रोशन होओगे ही ये जगत भी तुम्हारी रौशनी से चमकता रहेगा जिस दिन तुम्हारा ख्वाहिशो से मोह भंग हो जाएगा तुम्हारे जीवन की किश्ती भी उस पार तुम्हे पंहुचा देगी ©Parasram Arora

 White प्राणो मे ज़ब तक साँसों की ज्योति जलती रहेगी.

तुम तो  रोशन होओगे ही  ये जगत भी 
तुम्हारी रौशनी से चमकता रहेगा

जिस दिन तुम्हारा ख्वाहिशो से मोह भंग हो जाएगा 
तुम्हारे जीवन की किश्ती भी उस पार 
तुम्हे  पंहुचा देगी

©Parasram Arora

उस पार

12 Love

White माँ ________ -------------- ‌‌‌‌‌‌ शब्दों की जरूरत नहीं होती मुझे तुमको अपनी बात समझने के लिए मेरे चेहरे के भाव काफी हैं मेरे मन का हाल बतलाने के लिए जीवन के संघर्षों से- जब भी यह मन घबराता है 'मैं हूंँ ना ' , 'सब ठीक हो जायेगा' तुम्हारा यही कहना याद आता है खो दिया तुमने खु़द को मुझे आकार देने में मैंनें ही तो जी हैं ;वो खु़शियाँ भी जो थी तुम्हारे हिस्से में अब लोग रूठतें हैं ; मनातें नहीं हैं तेरी तरह मेरी ग़लतियाँ छुपाते नहीं है काश! ये समय का पहिया वापस घूम पाता, और मुझे बचपन की गलियों में ले जाता जब तुम लोगों की नजरों से बचाने के लिए मुझे काज़ल का टीका लगाया करती थी और दिन के अन्त में- तुम खुद अपनी ही लगी नजर उतरती थी तुमने मुझको हक़ दिया हैं ;खु़द को सताने का बिना बात के रूठ जाने का मेरे झूठें ऑंसुओं पर भी- तुम्हारा दिल पिघल जाता है समझ में नहीं आता है कि- न जाने किस मिट्टी से ऊपर वाला माँ को बनाता हैं। स्वरचित और मौलिक रियंका आलोक मदेशिया पडरौना ,कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश ©Riyanka Alok Madeshiya

#माँ  White माँ
________
--------------
     ‌‌‌‌‌‌       

शब्दों की जरूरत नहीं होती मुझे
तुमको अपनी बात समझने के लिए
मेरे चेहरे के भाव काफी हैं
मेरे मन का हाल बतलाने के लिए

जीवन के संघर्षों से-
जब भी यह मन घबराता है
'मैं हूंँ ना ' , 'सब ठीक हो जायेगा'
तुम्हारा यही कहना याद आता है

खो दिया तुमने खु़द को
मुझे आकार देने में
मैंनें ही तो जी हैं ;वो खु़शियाँ भी
जो थी तुम्हारे हिस्से में

अब लोग रूठतें हैं ; मनातें नहीं हैं
तेरी तरह मेरी ग़लतियाँ छुपाते नहीं है

काश! ये समय का पहिया वापस घूम पाता, 
और मुझे बचपन की गलियों में ले जाता

जब तुम लोगों की नजरों से बचाने के लिए
मुझे काज़ल का टीका लगाया करती थी
और दिन के अन्त में-
तुम खुद अपनी ही लगी नजर उतरती थी

तुमने मुझको हक़ दिया हैं ;खु़द को सताने का
बिना बात के रूठ जाने का
मेरे झूठें ऑंसुओं पर भी-
तुम्हारा दिल पिघल जाता है

समझ में नहीं आता है कि-
न जाने किस मिट्टी से ऊपर वाला माँ को बनाता हैं।

         स्वरचित और मौलिक
           रियंका आलोक मदेशिया
पडरौना ,कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश

©Riyanka Alok Madeshiya

#माँ

13 Love

#Motivational

हद पार मेहनत करो 💯💯💯

180 View

White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है, बेमतलब की बातों पर भी, मूरख सदा तर्क करता है, अपनी ही करतूतों से वह, जन्नत जहाँ नर्क करता है, सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, जड़ी पीस अर्क करता है, सूरज की गर्मी से मतलब, नाहक मकर कर्क करता है, अंतर्घट की प्यास बुझा लो, गुरुवाणी सतर्क करता है, 'गुंजन' विला जरूरत के भी, बस दिन-रात वर्क करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #बेड़ा  White बेड़ा स्वयं  ग़र्क़ करता है, 
घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है,

बेमतलब की बातों पर भी, 
मूरख सदा  तर्क  करता है,

अपनी ही  करतूतों से वह, 
जन्नत जहाँ नर्क  करता है,

सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, 
जड़ी पीस अर्क  करता है,

सूरज की  गर्मी से  मतलब, 
नाहक मकर कर्क करता है,

अंतर्घट की प्यास बुझा लो,
गुरुवाणी  सतर्क  करता है,

'गुंजन' विला जरूरत के भी, 
बस दिन-रात  वर्क करता है,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

#बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है#

13 Love

White क्षितिज के उस पार उड़ कर पहुंचने की आस हैँ आदमी को. सदियों से लगता हैँ उसे कहीं अपने कमज़ोर पंखो पर भरपूर भरोसा न आ गया हो ©Parasram Arora

 White क्षितिज के उस पार  
उड़ कर पहुंचने
की आस हैँ  आदमी   को.
सदियों से 

लगता हैँ उसे 
कहीं अपने कमज़ोर  पंखो पर 
भरपूर भरोसा   न आ गया हो

©Parasram Arora

उस पार

16 Love

Maa कहाँ हो लिखो माँ कभी तो मिलो माँ कैसी हो बताओ माँ मिलने तो आओ माँ कितनी दूर हो माँ मेरे पास आओ माँ हर सांस पर कर्ज है तेरा माँ फिर से चुकाने का मौका दो माँ जिंदगी में नहीं सोचा था कभी माँ आप भी मुझे छोड़ कर चलीं जाएंगी माँ ©DR. LAVKESH GANDHI

 Maa  कहाँ हो लिखो माँ 
कभी तो मिलो माँ 
कैसी हो बताओ माँ 
मिलने तो आओ माँ 
कितनी दूर हो माँ 
मेरे पास आओ माँ 
हर सांस पर कर्ज है तेरा माँ 
फिर से चुकाने का मौका दो माँ
जिंदगी में नहीं सोचा था कभी माँ 
आप भी मुझे छोड़ कर चलीं जाएंगी माँ

©DR. LAVKESH GANDHI

#माँ # #मेरी माँ कहाँ हो #

16 Love

White प्राणो मे ज़ब तक साँसों की ज्योति जलती रहेगी. तुम तो रोशन होओगे ही ये जगत भी तुम्हारी रौशनी से चमकता रहेगा जिस दिन तुम्हारा ख्वाहिशो से मोह भंग हो जाएगा तुम्हारे जीवन की किश्ती भी उस पार तुम्हे पंहुचा देगी ©Parasram Arora

 White प्राणो मे ज़ब तक साँसों की ज्योति जलती रहेगी.

तुम तो  रोशन होओगे ही  ये जगत भी 
तुम्हारी रौशनी से चमकता रहेगा

जिस दिन तुम्हारा ख्वाहिशो से मोह भंग हो जाएगा 
तुम्हारे जीवन की किश्ती भी उस पार 
तुम्हे  पंहुचा देगी

©Parasram Arora

उस पार

12 Love

White माँ ________ -------------- ‌‌‌‌‌‌ शब्दों की जरूरत नहीं होती मुझे तुमको अपनी बात समझने के लिए मेरे चेहरे के भाव काफी हैं मेरे मन का हाल बतलाने के लिए जीवन के संघर्षों से- जब भी यह मन घबराता है 'मैं हूंँ ना ' , 'सब ठीक हो जायेगा' तुम्हारा यही कहना याद आता है खो दिया तुमने खु़द को मुझे आकार देने में मैंनें ही तो जी हैं ;वो खु़शियाँ भी जो थी तुम्हारे हिस्से में अब लोग रूठतें हैं ; मनातें नहीं हैं तेरी तरह मेरी ग़लतियाँ छुपाते नहीं है काश! ये समय का पहिया वापस घूम पाता, और मुझे बचपन की गलियों में ले जाता जब तुम लोगों की नजरों से बचाने के लिए मुझे काज़ल का टीका लगाया करती थी और दिन के अन्त में- तुम खुद अपनी ही लगी नजर उतरती थी तुमने मुझको हक़ दिया हैं ;खु़द को सताने का बिना बात के रूठ जाने का मेरे झूठें ऑंसुओं पर भी- तुम्हारा दिल पिघल जाता है समझ में नहीं आता है कि- न जाने किस मिट्टी से ऊपर वाला माँ को बनाता हैं। स्वरचित और मौलिक रियंका आलोक मदेशिया पडरौना ,कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश ©Riyanka Alok Madeshiya

#माँ  White माँ
________
--------------
     ‌‌‌‌‌‌       

शब्दों की जरूरत नहीं होती मुझे
तुमको अपनी बात समझने के लिए
मेरे चेहरे के भाव काफी हैं
मेरे मन का हाल बतलाने के लिए

जीवन के संघर्षों से-
जब भी यह मन घबराता है
'मैं हूंँ ना ' , 'सब ठीक हो जायेगा'
तुम्हारा यही कहना याद आता है

खो दिया तुमने खु़द को
मुझे आकार देने में
मैंनें ही तो जी हैं ;वो खु़शियाँ भी
जो थी तुम्हारे हिस्से में

अब लोग रूठतें हैं ; मनातें नहीं हैं
तेरी तरह मेरी ग़लतियाँ छुपाते नहीं है

काश! ये समय का पहिया वापस घूम पाता, 
और मुझे बचपन की गलियों में ले जाता

जब तुम लोगों की नजरों से बचाने के लिए
मुझे काज़ल का टीका लगाया करती थी
और दिन के अन्त में-
तुम खुद अपनी ही लगी नजर उतरती थी

तुमने मुझको हक़ दिया हैं ;खु़द को सताने का
बिना बात के रूठ जाने का
मेरे झूठें ऑंसुओं पर भी-
तुम्हारा दिल पिघल जाता है

समझ में नहीं आता है कि-
न जाने किस मिट्टी से ऊपर वाला माँ को बनाता हैं।

         स्वरचित और मौलिक
           रियंका आलोक मदेशिया
पडरौना ,कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश

©Riyanka Alok Madeshiya

#माँ

13 Love

#Motivational

हद पार मेहनत करो 💯💯💯

180 View

White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है, बेमतलब की बातों पर भी, मूरख सदा तर्क करता है, अपनी ही करतूतों से वह, जन्नत जहाँ नर्क करता है, सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, जड़ी पीस अर्क करता है, सूरज की गर्मी से मतलब, नाहक मकर कर्क करता है, अंतर्घट की प्यास बुझा लो, गुरुवाणी सतर्क करता है, 'गुंजन' विला जरूरत के भी, बस दिन-रात वर्क करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #बेड़ा  White बेड़ा स्वयं  ग़र्क़ करता है, 
घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है,

बेमतलब की बातों पर भी, 
मूरख सदा  तर्क  करता है,

अपनी ही  करतूतों से वह, 
जन्नत जहाँ नर्क  करता है,

सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, 
जड़ी पीस अर्क  करता है,

सूरज की  गर्मी से  मतलब, 
नाहक मकर कर्क करता है,

अंतर्घट की प्यास बुझा लो,
गुरुवाणी  सतर्क  करता है,

'गुंजन' विला जरूरत के भी, 
बस दिन-रात  वर्क करता है,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

#बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है#

13 Love

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