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शीर्षक : ऐसे ही अब जीना है....
खुशहाल रहे जीवन, ये अहसास हर कोई करता
प्रश्न गहन, फुर्सत में कौन जिंदगी से ये बात करता !
दौड़ रही राहें, पांवों का रुकना अब मुश्किल लगता
अगर भूल से गिर गये तो आजकल कौन किसे उठाता !
हसरतों भरे आशियाने सज कर भी वीराने से लगते
दुनियादारी निभाने कभी मुस्कुराते चेहरे संग दिख जाते
रिश्तों के संसार में मजबूरी की आह रोज सुनाई देती
राजनीति की बीमारी जग बंधनों में भी अब नजर आती
उम्र की कोई कद्र न हो तो रिश्तों में मिठास नहीं रहती
किसे समझाएं ! टूटे सूखे पत्तों से महक कम ही आती
फलसफा जीने का, आज में ही अब सब कुछ पाना है
धोखा दे रही सांसे, उन पर भी अब विश्वास का रोना है
"कमल", सुख अब संसार का सुंदर टूटा सा खिलौना है
कल्पना में ही सब कुछ पाना, ऐसा ही अब ये जमाना है
✍️ कमल भंसाली
©Kamal bhansali
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