कभी हंसाकर रुलाया, तो कभी रुलाकर हँसा रही हो!
ए जिन्दगी तुम तो हर पल एक नया रंग दिखा रही हो!
घूँट जहर का भी तो हम बिना घबराए सहज पी लेते,
पर तुम तो अब घूँट गम का पिला रही हो!
कभी प्यारी है दुनिया कभी मक्कार सी , तुम्ही बता रही हो
ये तो बता हो तो मेरी ही न? या केवल अपनापन दिखा रही हो?
उठाकर मन तरंगो को आसमान तक, फिर गहरे गर्त में गिरा रही हो.!
कभी रुलाकर हँसाया मुझे, तो कभी मुझे हँसाकर रुला रही हो
जिन्दगी ये तो बता मेरी ही तो हो?या केवल अपनापन दिखा रही हो?
Written by - - Mahendra Dwivedi
[06/11, 8: 14 AM]
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