Phone thoughts
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#କବିତା #Phone  Phone ଜ୍ଞାନ ର ଭଣ୍ଡାର ମୁଁ  ଅଜ୍ଞାନୀ ର ସାହାରା 

ତୁମର ଜୀବନ ମୁଁ   ବଂଚିବା ର ଆଶ୍ରା..

ନୂଆ ନୂଆ ଗନ୍ତାଘର ଖୋଲି ମୁଁ ଦେଇଛି 

ତୁମ କୁ ବହୁ କଥା ଶିଖିବା ର ଅଛି …

ଭଲ ବାଟେ ନ ଯାଇ ଖରାପ ବାଟକୁ ବାଛୁଛ

ଜାଣି ଶୁଣି ନିଜ ହାତେ ନିଜ ଜୀବନ ବର୍ବାଦ କରୁଛ

ଯେ କୌଣସି କାମ ହେଉ ମୁଁ କରିବି ସାହାଯ୍ୟ ସବୁଥିରେ ..

ଭଲ କାମ ଛାଡି ମତେ ଲଗାଉଛ ଖରାପ କାର୍ଯ୍ୟ ରେ ..

ତୁମ ଦ୍ୱାରା ମୁଁ ଚାଲୁଚି ତୁମେ ମତେ ଆୟତ୍ତ କରୁଛ

ମତେ ନେଇ ଏମିତି ଅନ୍ଧ ଯେ ମତେ ଛାଡି ଗୋଟେ ମିନିଟ ବଞ୍ଚି ନ ପାରୁଛ..

ନିର୍ଜୀବ ବସ୍ତୁ ଟେ ମୁଁ ନାହିଁ ମୋର ଜୀବନ 

ଏମିତି ଶକ୍ତି ଅଛି ମୋ ଭିତରେ ମୁଁ ଦେଇ ପାରେ ଜୀବନ ପୁଣି ଆଣିପାରେ ମରଣ …

ଯାହା ବିନା ତୁମ ର ଚାଲେ ନାହିଁ ସ୍ପନ୍ଦନ 

ମୁଁ ତୁମ ର ସେହି ପ୍ରିୟ ମୋବାଇଲି ଫୋନ ..

©Abismita Mishra

#Phone

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#कहानी_में_twist #सस्पेंस  Phone एक दोस्त आज बार बार अपना 

फोन निकल उसके मैसेज को चेक कर रहा था

उससे मैसेज का इंतजार ही नही हो रहा था

इतना बेसब्र था 

क्योंकि आज वो आने वाली थी



गलत मत सोचना 


मैं उसकी सैलरी 
की बात कर रहा हूं

©Sajan
#विचार #Phone  Phone कई बार सोचा कि छोड़ दूं.......
ये मोबाइल, व्हाट्सएप और इन्टरनेट की 📱📱दुनिया💬..........
पर फिर याद🤔 आया की आजकल
दोस्त और रिश्तेदार सब ......
यही पर मिलते हैं!

©Priyanka sehgal

Phone रोज़ सवेरे ज़ब उठता हू अपनें बिस्तर सें अपनें हाथो को ख़ाली ख़ाली सा पाता हू तब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं अग़र कोईं उन हाथो मे मोबाइल पकड़ा दे तो उऩ हाथो को भी ब़डा मज़ा आता हैं । मुझें दोपहर क़ो भूख़ ज़ब ब़ड़ी जोर से लग़ती हैं और ज़ब भोज़न से भरी थाली मेरे सामने आती हैं तब़ भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं अग़र थाली के साथ कोईं मोबाइल भी दे देता हैं तो खाना-खाने मे भी मज़ा आता हैं। ब़ाहर टहलना मुझें ब़हुत पसन्द हैं पर ज़ब मै टहलता हू तो खुद़ को अकेला सा पाता हू फिर भीं पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं अग़र टहलते टहलते मोबाइल साथ मे आ जाएं तो इस टहलनें मे भी मज़ा आता हैं। ट्रेन की ख़िड़की के बाहर अनेक चित्र दिखते है ‌क़भी पेड़ो की हरियाली तो क़भी ऊचे-ऊचे गिरि फिर भीं पता नही क्यो मुझे मज़ा नही आता हैं पर उन्हीं चित्रो को ज़ब मोबाइल से खिचलू हू तब़ उन चित्रो को देख़ने मे भी मज़ा आता हैं। मित्रो के साथ़ बहुत गप्पें लड़ाता हू हम इतना हसते हसाते है किं पेट दर्दं देने लग़ता हैं फिर भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं अग़र कोईं मित्र किसी मोबाइल के बारें मे बताता हैं तो फिर ब़ातचित क़रने मे भी मज़ा आता हैं। तरोताज़ा रहनें के लिए कुछ़ खेल खेला क़रता हू क़भी फुटबांल तो क़भी क्रिकेट अब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं अग़र वही खेल मे मोबाइल मे खेल लू तो उस खेंल को खेलनें मे भी मज़ा आता हैं। बचपन सें ही मुझें सन्गीत सें बेहद लगाव हैं इसलिए ऑर्केंस्ट्रा मे जाना भीं ब़हुत पसन्द हैं फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं अग़र वहीं सन्गीत मैं मोबाइल पर सुन लू तो उस सन्गीत सुननें मे भी मजा आता हैं। खुद़ को ज़ब क़भी खोया खोया सा पाता हू मन्दिर मे जाक़र थोड़ा ज़प क़र लेता हू फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं अग़र इस गुमशुदा को मोबाइल मिल जाएं तो इस‌ खोएं मन को भी मज़ा आता हैं ©पूर्वार्थ

#Phone  Phone रोज़ सवेरे ज़ब उठता हू अपनें बिस्तर सें
अपनें हाथो को ख़ाली ख़ाली सा पाता हू
तब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं उन हाथो मे मोबाइल पकड़ा दे
तो उऩ हाथो को भी ब़डा मज़ा आता हैं ।
मुझें दोपहर क़ो भूख़ ज़ब ब़ड़ी जोर से लग़ती हैं
और ज़ब भोज़न से भरी थाली मेरे सामने आती हैं
तब़ भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र थाली के साथ कोईं मोबाइल भी दे देता हैं
तो खाना-खाने मे भी मज़ा आता हैं।
ब़ाहर टहलना मुझें ब़हुत पसन्द हैं
पर ज़ब मै टहलता हू तो खुद़ को अकेला सा पाता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र टहलते टहलते मोबाइल साथ मे आ जाएं
तो इस टहलनें मे भी मज़ा आता हैं।
ट्रेन की ख़िड़की के बाहर अनेक चित्र दिखते है
‌क़भी पेड़ो की हरियाली तो क़भी ऊचे-ऊचे गिरि
फिर भीं पता नही क्यो मुझे मज़ा नही आता हैं
पर उन्हीं चित्रो को ज़ब मोबाइल से खिचलू हू
तब़ उन चित्रो को देख़ने मे भी मज़ा आता हैं।
मित्रो के साथ़ बहुत गप्पें लड़ाता हू
हम इतना हसते हसाते है किं पेट दर्दं देने लग़ता हैं
फिर भी पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र कोईं मित्र किसी मोबाइल के बारें मे बताता हैं
तो फिर ब़ातचित क़रने मे भी मज़ा आता हैं।
तरोताज़ा रहनें के लिए कुछ़ खेल खेला क़रता हू
क़भी फुटबांल तो क़भी क्रिकेट
अब़ पता नही क्यो मुझें मज़ा नही आता हैं
अग़र वही खेल मे मोबाइल मे खेल लू
तो उस खेंल को खेलनें मे भी मज़ा आता हैं।
बचपन सें ही मुझें सन्गीत सें बेहद लगाव हैं
इसलिए ऑर्केंस्ट्रा मे जाना भीं ब़हुत पसन्द हैं
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र वहीं सन्गीत मैं मोबाइल पर सुन लू
तो उस सन्गीत सुननें मे भी मजा आता हैं।
खुद़ को ज़ब क़भी खोया खोया सा पाता हू
मन्दिर मे जाक़र थोड़ा ज़प क़र लेता हू
फिर भीं पता नही क्यो मुझें मजा नही आता हैं
अग़र इस गुमशुदा को मोबाइल मिल जाएं
तो इस‌ खोएं मन को भी मज़ा आता हैं

©पूर्वार्थ

#Phone

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Phone _______After_An_Alarm_______ If I meet mine mate in morning after an alarm. It means I have harm as my mobile. Still it depends on the users... ...✍️by VIKAS SAHNI ©Vikas Sahni

#कविता #After_An_Alarm  Phone _______After_An_Alarm_______

If I meet mine mate in morning
after an alarm.
It means I have harm 
as my mobile.
Still it depends 
on the users...
...✍️by VIKAS SAHNI

©Vikas Sahni

Phone एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा... वो मेरी फिक्र में जागा सा मै उसके दर्द मे रोयी सी,, वो मेरे आंसुओं मे भीगा सा मै उसकी हसीं मे मुस्कुरायी सी एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा... वो मेरे लिये दुआये करता मै उसकी इबादत करती,, वो हर किसी से मेरा हाल पुछता मै बस उसकी सलामती चाहती एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा... वो ना मेरा कुछ लगता ना मै उसका कुछ लगती हमारा रस्मों का नही दिल का है नाता एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा. ©Rihan khan

#Phone  Phone एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा...
वो मेरी फिक्र में जागा सा मै उसके दर्द मे रोयी सी,,
वो मेरे आंसुओं मे भीगा सा मै उसकी हसीं मे मुस्कुरायी सी
एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा...
वो मेरे लिये दुआये करता मै उसकी इबादत करती,,
वो हर किसी से मेरा हाल पुछता मै बस उसकी सलामती चाहती 
एक रिश्ता अधूरा सा 
फिर भी मुकम्मल सा...
वो ना मेरा कुछ लगता ना
 मै उसका कुछ लगती
हमारा रस्मों का नही दिल का है नाता
एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा.

©Rihan khan

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