Phone एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा...
वो मेरी फिक्र में जागा सा मै उसके दर्द मे रोयी सी,,
वो मेरे आंसुओं मे भीगा सा मै उसकी हसीं मे मुस्कुरायी सी
एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा...
वो मेरे लिये दुआये करता मै उसकी इबादत करती,,
वो हर किसी से मेरा हाल पुछता मै बस उसकी सलामती चाहती
एक रिश्ता अधूरा सा
फिर भी मुकम्मल सा...
वो ना मेरा कुछ लगता ना
मै उसका कुछ लगती
हमारा रस्मों का नही दिल का है नाता
एक रिश्ता अधूरा सा फिर भी मुकम्मल सा.
©Rihan khan
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