कुछ पल की पूर्णिमा थी ,
फिर अमावस्य आई थी ।
बूझ गए वो दीए ,
जो गत वर्ष मैंने जलाई थी।
रोज तलाशती हूँ उस दीए को ,
जो बूझ कभी पाए ना ।
कब आएगी वो दीवाली ?
फिर अमावस्य आए ना ।
इस बार भी दीपक जलाऊँगी ,
पर्वत - सी बाती की ।
तुम क्या बिगाडोगे वारि ,
तेरे ऊपर से जाऊँगी ।
©Annu Sinha
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