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prakash
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बारी जब मेरी तारीफ की आयी, रातो-रात अख़बार बदल गए थे ,, बोली जब मेरे हुनर की लगी, देखते ही देखते बाजार बदल गए थे ,, किसी को अपना कहने से पहले सोचना जरूर शायर! गुरबत के दिनों ने जब घेरा था मुझे वो अपने और वो सारे रिस्तेदार बदल गए थे .... k ©prakash
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आँखों की मासूमियत पर नहीं, नजर तेज पंजो पे रख, यहाँ खरगोश की खाल मे शिकारी बहोत है चेहरे पर मुस्कुराहट और दिल मे खंजर लेकर चलते है ये, ज़माने मे दिखावे की बीमारी बहोत है तन ढकने के कपडे से मन परखने वालों, जरा ध्यान से यहाँ सूट-बूट पहनकर घूमते भिखारी बहोत है... k ©prakash
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इस तरह मशरूफ़ हुँ जिंदगी बनाने मे शायर, ये भी भूल गया हुँ के जीना किसे कहते है... k ©prakash
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सो चुकी है कलम तेरी, आलसी तेरी स्याही हो रही है सुस्त पलके तेरी आँखों से हट नहीं रही शायर, देख! जहाँ मे तबाही हो रही है k ©prakash
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