Sahil

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मुकद्दर मैं शायद नमाज़ और अज़ान ही थी उसके वो ताउम्र मस्जिद की देहलीज़ पे बैठा रहा. ©Sahil

#कविता #Namaaz  मुकद्दर मैं शायद नमाज़ और अज़ान ही थी उसके 

वो ताउम्र मस्जिद की देहलीज़  पे बैठा रहा.

©Sahil

#Namaaz

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मैंने हमेशा अपनों से डरना सीखा है ज़कात और खैरात बस गैरों से ही तो मिली है ©Sahil

#कविता #डर  मैंने हमेशा अपनों से डरना सीखा है 

ज़कात और खैरात बस गैरों से ही तो मिली है

©Sahil

#डर

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आज आईने मैं अपने ही अक्स को जिंदा पाया मैं थक कर बैठ गया था इसलिए बेज़ुबान हूँ ©Sahil

#कविता #aks  आज आईने मैं अपने ही अक्स को जिंदा पाया 

मैं थक कर बैठ गया था इसलिए बेज़ुबान हूँ

©Sahil

#aks

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जो कल खिलते गुलाब देखे बागबां मैं आँगन मैं अपने मिट्टी के ना होने का ग़म जाना ©Sahil

#कविता #mitti  जो कल खिलते गुलाब देखे बागबां मैं 

आँगन मैं अपने मिट्टी के ना होने का ग़म जाना

©Sahil

#mitti

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एक सलवार सा बंधा रहा ये जीवन गांठें जो खुली तो बेआबरू हो गए ©Sahil

#कविता #aabroo  एक सलवार सा बंधा रहा ये जीवन 

गांठें जो खुली तो बेआबरू हो गए

©Sahil

#aabroo

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तुम मुझे ऊँचे तख्त पर मत बैठाना वहां शराफ़त बैठा करती है हम अदब और सलूक वाले लोग हैं जल्द ही गिर जाया करते हैं ©Sahil

#कविता #Sharafat  तुम मुझे ऊँचे तख्त पर मत बैठाना
वहां शराफ़त बैठा करती है 


हम अदब और सलूक वाले लोग हैं
जल्द ही गिर जाया करते हैं

©Sahil

#Sharafat

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