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आंचल मां का हो या यार का मैं हूं या कोई और सकून मिल ही जाता है पेड़ की छांव में मैं बैठूं या कोई और इसमें उसकी मर्जी मेरा क्या जाता है बस इतना समझ लो साहब जब यह आंचल छूट जाता है खुदा कसम आदमी बुरी तरह टूट जाता है ©Vivek rana
Vivek rana
18 Love
Someday I Will ए आसमां तुझे देखकर अपने बचपन की याद आती है तेरी ही छांव में मैं बच्चे से बड़ा हुआ तेरी छांव मैं इस धरती पर आया माँ की गोद में और पिता के कंधे पर बैठ पाया ए आसमां एक बार फिर से मुझे मेरा बचपन लोटा दे पिता की उंगली थाम और मां की चुनरी पकड़ चला करता था मैं मां के इर्द-गिर्द घूमा करता था मैं ना जाने कब गलियों में खेलते खेलते शहर की इमारतों में खो गया क्यों मेरा बचपन ने दामन छोड़ दिया क्यों समय के खेल ने मुझे बड़ा किया ©Vivek rana
13 Love
अख़बार मैं राजनीति मैं सत्ता हूं शुरुआत तो हुई थी बड़े-बड़े वादों से अच्छे नेक इरादों से मगर मेरे दामन पर हजारों दाग है ना जाने कितने किए गुनाह और पाप है वक्त ने भी मेरा रंग दिखा दिया मेरे वादों का रंग फीका किया जो टिक ना सके वह मैं थी जो टिक गए वह मेरे पूंजीपति बाप थे मेरे देश मरता रहा दर्द भरी आहे भरता रहा और मैं सत्ता करती रही ना जाने क्यों बड़े-बड़े वादों और नेक इरादों से आगे आगे बढ़ती रही हां मैं सत्ता हूं ©Vivek rana
9 Love
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जिंदगी की दौड़ बस इतनी है साहब कुछ इसको बनाने में लगे हैं तो कुछ जिंदगी को बचाने में अपनों के छूटते दामन को संभालने में और कुछ अपनों की आखिरी विदाई में लगे हैं ©Vivek rana
12 Love
तेरे जाने के बाद सोचता हूं तुझे याद करूं या भुला दूं कब तक अपने आप को सजा दूं कुछ पल बाद फिर सोचता हूं कि किसी नए को आने की जगह दूं ©Vivek rana
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