वो पथराई आँखों से देखती रही एक के बाद दूसरा ,दूसरे के बाद तीसरा ,और ये सिलसिला चलता रहा वो मौन हो चुकी थी वाणी के पास वो शब्द नहीं थे जो इस हैवानियत को बयां करे, पर सांसे तो अब भी चल रही थी वो देख रही थी इंसा के भेष में जानवरों को, उसके शरीर पर जो थोड़े बहुत वस्त्र बचे थे उसे भी फाड़ दिया उसने क्योँ की इंसानियत पहले ही नग्न हो चुकी थी....कहते हैं आत्मा ही खुदा का दूसरा रूप होती हैं, उसकी आत्मा मर् चुकी थी और खुदा भी.........
@mamta raj...
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