بیٹی अपने पापा की परी थी जो,अब उड़ना भूल गई।
आईने के सामने, सजना संवरना भूल गई।
डोली में बिठाकर, जिमेदारियों ने ऐसे जकड़ा,
कि वो मायके के रास्ते मुड़ना भूल गई।
अपने पापा की परी थी जो,अब उड़ना भूल गई।
अपने ही घर महमान जैसी आती है।
एक दो रोज रुकना,फिर चली जाती है।
कुछ रिश्ते,उसके घर आजाने से रूठ जाते हैं,
मगर अब वो ख़ुद रूठना भूल गई।
अपने पापा की परी थी जो,अब उड़ना भूल गई।
आईने के सामने, सजना संवरना भूल गई।
•उल्पेश•
©Ulpesh Thakur
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