विषैले सर्प
क्या कहें अब हम उन सरपो को ,जिन्हें विषधर हम ही बनाते हैं
जिस छाती का कभी दूध पिया,
चढ़ उसी की इज्जत लूटते हैं
रिश्तों की गरिमा इतनी गिरी,
संभाले नही ये संभलेगी
अब वो दिन दूर नहीं,
जब मा वैश्या के जैसी होगी
गाली भी देते मा को तो,मा की गाली दे जाते हैं
जिन्हें शब्दों का कोई ज्ञान नहीं,
फिर उनको क्यों इज्जत देते है?
इन सापो को कब तक पालोगे,
इनके जिस्मों में है जहर भरा
काट विषैले अंगो को फिर,संग चलना बेहतर होगा
भीरू नहीं निर्भीक बनो,
और खड्ग उठाओ कर में
चिर अलग कर अंगो को
अपने इस महासमर में।
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