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scientist at ISROwritting, poetry, music lover
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पंचायत लुटेरों को जीता कर परधानी में ला दिए सूखी ऊँची सड़क को फिर पानी में ला दिए एक पउआ के लिए बेच आए जो ईमान अपना अब कहतें हैं की परधान को नादानी में ला दिए अनपढ़ तो कहते हैं हम तो पहले से सज्ज थे जो बच गए कहते हैं खिचा- तानी में ला दिए शायद अब बस्ती भी खंडहर में बदल जाएगी ज़हर को अपने हाथों ही गुड़- धानी में ला दिए कुछ छुपकर कर दिए खिलाफत अपने नेता की वोट ना देकर ख़ुद को उनकी निगरानी में ला दिए ©Sonu Yadav ( यदुवीर )
Sonu Yadav ( यदुवीर )
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poetry written by me ©Sonu Yadav ( यदुवीर )
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मंज़िल मिले न मिले चलने को सफ़र रखता है ठोकर खाके भी वो बढ़ने का ज़िगर रखता है। हम अपनी गलतियों को भला छुपाएं भी कैसे, गुनाह किसी से हो इलज़ाम मिरे सर रखता है। टूट के बिखर ना जाए अंधियो के झोकों से परिंदों की खातिर ही दरख़्त शज़र रखता है। उसके ज़ुल्म की ज़द से कहीं निकल ना जाएं, इसलिए मिरे चाहने वालों की ख़बर रखता है। सुकून से मर भी जाएं ये भी मुनासिब नहीं है, वो तो गीद्धों की तरह लाशों पे नज़र रखता है। ©Sonu Yadav ( यदुवीर )
पत्थर तोड़कर हमने खुद का रास्ता बनाया है। इस तरह लड़कर हमने अपनी दास्ताँ बनाया है। क़त्ल के इस वक़्त में क्यों चीखते बिलखते हो तुमने ही तो क़ातिल को बादशाह बनाया है । क्या हुनर छुपा उसकी हाथों की सफाई में, क़त्लेआम करके फिर उसे हादसा बनाया है। इक तो ज़िन्दगी पहले ही मुफलिसी में गुज़री है, ऊपर से तुमने तो मर के सिर्फ खर्चा बढ़ाया है। क़ौम की इस लड़ाई में बच के अब कहाँ जाएँ, इक तरफ मंदिर तो दूजी ओर मस्जिद बनाया है। ©Sonu Yadav ( यदुवीर )
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रह गयी याद-ए-मोहब्बत में कहानी बनकर ज़ख्म चुभने लगे यादों की निशानी बनकर मैं तो ठहरा रहा मोहब्बत में पत्थर की तरह वो तो पत्थर पे भी बहती रही पानी बनकर अफ़सोस उसे दे न सका पल भर की ख़ुशी जिसने चाहा मुझे पागल दीवानी बनकर छुपा के रक्खा जिस रुख़ को निगाहों में मैंने रह गयी हिस्से में वो तस्वीर पुरानी बनकर लगा उठने जब कन्धों पे ज़नाज़ा उनका आँख भर आयी लहू की रवानी बनकर ©Sonu Yadav
फ़लक में चाँद है तो होने दो हमें उससे क्या, वो छत पे आ जाये नज़र उसी को महताब समझूँ। वैसे हर रोज़ आँखों में उतरते हैं कितने चेहरे, तेरा चेहरा नज़र आ जाये उसी को ख़्वाब समझूँ। यहाँ तो हर रोज़ इश्क़ की लहरें बहाने आती है जो वो डुबाने आए तो उसी को सैलाब समझूँ। वैसे कितने हैं यार ज़िन्दगी को बिताने के लिए, अगर वो मिल जाये तो उसी को अहबाब समझूँ। अहबाब- यार, प्रेमी, दोस्त ©Sonu Yadav
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