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ज़ब तक सूरज मे तेज रहे ज़ब तक शीतलतम रहे चन्द्रमा ज़ब तक वायु मे वेग रहे ज़ब तक सरिता कि धारा हो ज़ब तक पृथ्वी पर पानी हो महि भार उठाते शेषनाग और सागर बिच रवानी हो ज़ब तक उदयाचल अरुणीम हो ज़ब तक अस्ताचल दीप्त रहे ज़ब तक ये अवनि का आँचल हो वन से उपवन से लिप्त रहे ज़ब तक आकाश विशाल रहे और हिमशीखरों का भाल रहे ज़ब तक अग्नि मे तपन रहे ज़ब तक पंक्षी मे लगन रहे ज़ब तक सूरज रथा रुण हो मंगल भोर प्रभाती गाये आन बान और शान तिरंगा यूं ही अंबर तक लहराये यूं ही अंबर तक लहराये ©ranjit winner
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White क्या कहती हो ठहरो नारी! संकल्प अश्रु-जल-से-अपने। तुम दान कर चुकी पहले ही जीवन के सोने-से सपने। नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में। पीयूष-स्रोत-सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में। देवों की विजय, दानवों की हारों का होता-युद्ध रहा। संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित रह नित्य-विरूद्ध रहा। आँसू से भींगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा- तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा। ©ranjit winner
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हम जो अब गलत तो रहने दो कुछ न दरमियाँ तो रहने दो शब्द मौन है तो रहने दो तुम अब तुम हम अब हम तो रहने दो फूल सुख गए! सुगंध नही? तो रहने दो किरदार अब घर गए ख़ामोशी है तो रहने दो रहने दो कि.. परदा गिरता है कहनी अब खत्म हूई || ©ranjit winner
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