World Environment Day
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पर्यावरण ठंडा करके कमरो को धरती को तपा रहे हैं। सड़क-फ्लाईओवर से जंगल को हटा रहे हैं। सजा कर घर अपने ओजोन को रहे कुरेद कुदरत की कुशलता से क्यो हैं हमे परहेज। ये हरयाली नहीं होगी तो पृथ्वी होगी अस्वस्थ हर प्राणी, हर जीव का जीवन होगा संत्रस्त। हमसे नही ये पर्यावरण हम है इससे बने हुए तोड़कर संतुलन इसका हम भी नही है जुडे़ हुए। परिवेश से दुर्व्यवहार का भुगतान बडा़ कठिन हैं जीवन की सुंदरता असंभव प्रकृति के बिन हैं। 🌿संतोष . ©संतोष

#WorldEnvironmentDay  पर्यावरण  ठंडा करके कमरो को
धरती को तपा रहे हैं।
सड़क-फ्लाईओवर से
जंगल को हटा रहे हैं।
सजा कर घर अपने
ओजोन को रहे कुरेद
कुदरत की कुशलता से
क्यो हैं हमे परहेज।
ये हरयाली नहीं होगी तो
पृथ्वी होगी अस्वस्थ
हर प्राणी, हर जीव का
जीवन होगा संत्रस्त।
हमसे नही ये पर्यावरण
हम है इससे बने हुए
तोड़कर संतुलन इसका
हम भी नही है जुडे़ हुए।
परिवेश से दुर्व्यवहार का
भुगतान बडा़ कठिन हैं
जीवन की सुंदरता 
असंभव प्रकृति के बिन हैं।

🌿संतोष













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©संतोष

#WorldEnvironmentDay એ પણ એક જીવ, જેમ આપણે છીએ, જેના સહારે ટકયા, એને જ કાપીએ છીએ. #words_of_Vasim ©Vasim Gaha

#WorldEnvironmentDay #विचार #words_of_Vasim  #WorldEnvironmentDay એ પણ એક જીવ, જેમ આપણે છીએ,
જેના સહારે ટકયા, એને જ કાપીએ છીએ.

#words_of_Vasim

©Vasim Gaha

#WorldEnvironmentDay कुछ पाने के लिए कुछ हमें बोना पड़ेगा प्रकृत्ति से मिले वरदान को संजोना पड़ेगा हरियाली के लिए पेड़ो को उगाना पड़ेगा त्योहारों में एक त्योहार पर्यावरण दिवसीय त्योहार मनाना पड़ेगा ©Neha Jha

#WorldEnvironmentDay  #WorldEnvironmentDay  
कुछ पाने के लिए कुछ हमें बोना पड़ेगा

प्रकृत्ति से मिले वरदान को संजोना पड़ेगा

हरियाली के लिए पेड़ो को उगाना पड़ेगा

 त्योहारों में एक त्योहार
 पर्यावरण दिवसीय त्योहार मनाना पड़ेगा

©Neha Jha

पेड़ो को उगाते हैं हरा-भरा देश बनाते हैं 🌳 #WorldEnvironmentDay

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#WorldEnvironmentDay शीर्षक-हमारा पर्यावरण हमारी सज़ा असहनीय यह गर्मी स्वाभाविक या कोई खता हमारी है, यह सोचने का भी समय और भुगतने की भी बारी है, जो पूर्व में किए हैं असामाजिक कृत्य हमने, निसंदेह यह उन्हीं की सज़ा हमारी है। कट रहे वृक्ष जो प्रतिदिन धारा भी तप रही है, पिघल रहे हिमनद अम्बर से अग्नि बरस रही है, क्या कु कृत्य कर रहा है हे मानव तू, गलती तेरी सजा मां प्रकृति भुगत रही है। जल रहे हैं जंगल पकी फसल जल रही है, देख हालात ऐसे किसान की मेहनत खल रही है, देख स्तब्ध हूं मैं इस दुर्दशा पर इंसान की, निकली थी जो हिमालय से अब अदृश्य चल रही है। हो रहा कैसा उलटफेर ऋतुओं में सब सोच रहे हैं, कभी शीत में तो कभी बसंत में सूर्य को कोस रहे है, कभी भूकम्प कभी तूफान कभी सुनामी को तैयार हैं, ऋतू बरसात की आने से पहले बाढ़ को सब पोंछ रहे हैं । सूख रहे जल स्रोत सब नदिया भी दम तोड़ रही, इस बदहाली की हालत में नव पल्लव भी जग छोड़ रही, कैसी है यह दुर्दशा और इसका क्या समाधान है, अपराधी यह दुनिया सारी दंडवत हो हाथों को जोड़ रही। ललित भट्ट ✍️🙏 ©Lalit Bhatt

#WorldEnvironmentDay #कविता  #WorldEnvironmentDay शीर्षक-हमारा पर्यावरण हमारी सज़ा 

असहनीय यह गर्मी स्वाभाविक या कोई खता हमारी है,
यह सोचने का भी समय और भुगतने की भी बारी है,
जो पूर्व में किए हैं असामाजिक कृत्य हमने,
निसंदेह यह उन्हीं की सज़ा हमारी है।

कट रहे वृक्ष जो प्रतिदिन धारा भी तप रही है,
पिघल रहे हिमनद अम्बर से अग्नि बरस रही है,
क्या कु कृत्य कर रहा है हे मानव तू,
गलती तेरी सजा मां प्रकृति भुगत रही है।

जल रहे हैं जंगल पकी फसल जल रही है,
देख हालात ऐसे किसान की मेहनत खल रही है,
देख स्तब्ध हूं मैं इस दुर्दशा पर इंसान की,
निकली थी जो हिमालय से अब अदृश्य चल रही है।

हो रहा कैसा उलटफेर ऋतुओं में सब सोच रहे हैं,
कभी शीत में तो कभी बसंत में सूर्य को कोस रहे है,
कभी भूकम्प कभी तूफान कभी सुनामी को तैयार हैं,
ऋतू बरसात की आने से पहले बाढ़ को सब पोंछ रहे हैं ।

सूख रहे जल स्रोत सब नदिया भी दम तोड़ रही,
इस बदहाली की हालत में नव पल्लव भी जग छोड़ रही,
कैसी है यह दुर्दशा और इसका क्या समाधान है,
अपराधी यह दुनिया सारी दंडवत हो हाथों को जोड़ रही।
                                     ललित भट्ट ✍️🙏

©Lalit Bhatt

#WorldEnvironmentDay શબ્દો : 51 શીર્ષક : "શરમ" "કેટલી ગંદકી છે અહીં" મોં મચકોડતા નાક આડે રૂમાલ રાખી સાધના બહેન પડોશી સહેલીઓ સાથે પોતાની શેરીમાંથી બહાર નીકળ્યા. કાયમની જેમ કોઈ જોતું નથી ને એની ખાતરી કરીને શેરીના નાકે વાડ કરેલી એ જગ્યામાં સાધના બહેન જેવો કચરો ઠાલવીને પાછા ફર્યા કે પડોશણે જોતા એ મચકોડાયેલું મોઢું આજે શરમથી ઝૂકી ગયું.✍️જાગૃતિ તન્ના "જાનકી" ©JAGRUTI TANNA

#WorldEnvironmentDay #પ્રેરક  #WorldEnvironmentDay શબ્દો : 51

શીર્ષક :  "શરમ"

"કેટલી ગંદકી છે અહીં" મોં મચકોડતા નાક આડે રૂમાલ રાખી સાધના બહેન પડોશી સહેલીઓ સાથે પોતાની શેરીમાંથી      બહાર નીકળ્યા.

કાયમની જેમ કોઈ જોતું નથી ને એની ખાતરી કરીને શેરીના     નાકે વાડ કરેલી એ જગ્યામાં સાધના બહેન જેવો કચરો       ઠાલવીને પાછા ફર્યા કે પડોશણે જોતા એ મચકોડાયેલું મોઢું આજે શરમથી ઝૂકી ગયું.✍️જાગૃતિ તન્ના "જાનકી"

©JAGRUTI TANNA

#WorldEnvironmentDay तरस रही है धरा बूंद बूंद को संभल जाओ वरना तरसना पडे़गा एक रोज़ बूंद बूंद को हवा मौसम बारिश सबने अपना रूख बदला है धरा को नहीं इससे मानव सभ्यता को खतरा है !! युवराज श्रीवास्तव *गौरव * ©Yuvaraj Srivastav

#WorldEnvironmentDay  #WorldEnvironmentDay तरस रही है धरा 
बूंद बूंद को 
संभल जाओ वरना 
तरसना पडे़गा एक रोज़ 
बूंद बूंद को 

हवा मौसम बारिश 
सबने अपना रूख बदला है 
धरा को नहीं इससे 
मानव सभ्यता को खतरा है !! 


युवराज श्रीवास्तव 
*गौरव *

©Yuvaraj Srivastav
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